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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवा भाग .455 mo ~rnwrwww.rar mmm vom . ~* wwmwww.. एक समय एक छोटे से अपराध के हो माने पर कुपित होकर इस ने मुझे यह दंड दिया है। न मालूम यह देवी तुम्हें किस समय और किस ढंग से मार देगी। पहले भी कई मनुष्यों को मार कर यह हड्डियों का ढेर कर रखा है। शूली पर लटकते हुए पुरुष के उपरोक्त वचनों को सुन कर दोनों भाई बहुत भयभीत हुए और वहाँ से भाग निकलने का उपाय पूछने लगे। तब वह पुरुष कहने लगा कि पूर्व दिशा के वनखण्ड में शैलक नाम का एक यक्ष रहता है। उसकी पूजा करने से प्रसन्न होकर वह तुम्हें इस देवी के फन्दे से छुड़ा देगा। यह सुन कर वेदोनों भाई यत्त के पास जाकर उसकी स्तुति करने लगे और उस देवी के फन्दे से छुड़ाने की प्रार्थना करने लगे। उन पर प्रसन्न होकर यह कहने लगा कि मैं तुम्हें तुम्हारे इच्छित स्थान पर पहुँचा दूँगा। किन्तु मार्ग में वह देवी आकर अनेक प्रकार के हावभाव करके अनुकूल प्रतिकूल वचन कहती हुई परिषह उपसर्ग देगी। यदि तुम उसके कहने में आकर उसमें आसक्त हो जानोगे तो मैं तुम्हें मार्ग में ही अपनी पीठ पर से फेंक लूंगा। यत की इस शर्त को उन दोनों भाइयों ने स्वीकार किया। यत्त ने अश्व का रूप वनाया और दोनों भाइयों को अपनी पीठ पर बैठा कर आकाश मार्ग से चला / इतने में वह देवी मा पहुँची / उनको वहॉ न देख कर अवधिज्ञान से शैलक यक्ष की पीठ पर जाते हुए देखा। वह शीघ्र वहाँ आई और अनेक प्रकार से हावभाव पूर्वक अनुकूल प्रतिकूल वचन कहती हुई करुण विलाप करने लगी। जिनपाल ने उसके वचनों पर कोई ध्यान नहीं दिया किन्तु जिनरत उसके वचनों में फंस गया। वह उस पर मोहित होकर प्रेम के साथ रयणा देवी को देखने लगा। जिससे उस यक्ष ने अपनी पीठ पर से फेंक दिया।नीचे गिरते हुए मिनरल को उस देवी नेशूली में पिरोदिया
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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