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________________ . . . . ~~ श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह, पाचवा भाग -~in ram rm umrammwww w amar in umr nrnwww. . वाह टही, पेशाव भ्यादि करने के लिए जाने की इच्छा करता तो वह चोर साथ चलने से इन्कार हो जाता। तब दसरा कोई उपाय न होने के कारण धन्ना सार्थवाह अपने भोजन में से थोड़ा योजन उस चोर को भी देता और उसे अपने अनुकूल ररवता / जब धभा सार्थयाह कैद से छूट कर घर माया तो अपने पुत्र की हत्या करने वाले चोर को भोजन देने के कारण उसकी पत्नी ने उसका तिरस्कार किया और उपालम्भ दिया। तव धन्ना ने उस चोर को भोजन देने का कारण समझाया और अपनी पत्नी के क्रोध फो शान्त किया। उपरोक्त दृष्टान्त देकर शास्त्रकार ने इसका निगमन (उपनय) इस प्रकार घटाया है-राजगृह नगर के समान मनुष्य क्षेत्र है। धन्ना सार्थवाह के समान साधु है। विजय चोर के समान शरीर है। पुत्र के समान निरुपम श्वानन्द को देने वाला संयम है। अयोग्य आचरण करने से इसका विनाश हो जाता है / आभूषणों के समान शब्दादि विषय हैं। इनका सेवन करने से संयम का विनाश हो जाता है। हडिबन्धन (खोड़े) के समान जीव और शरीर का सम्बन्ध है। राजा के समान कर्य परिणाम और रामपुरुषों के समान कर्मों फे भेद हैं। छोटे से अपराध के समान मनुष्यायु वध के कारण हैं। मलमूत्रादि की निवृत्ति के समान प्रत्युपेक्षण (पडिलेहना) आदि कार्य हैं अर्थात् जिस प्रकार अपने भोजन में से कुछ हिस्सा विजय चोर को न देने से वह यलमूत्रादि की निवृत्ति के लिए धन्ना सार्थवाह के साथ नहीं जाना था इसी प्रकार इस शरीर को भोजन आदि न देने से पहिलेहणा आदि संगम क्रियाओं में सम्यक प्रवृत्ति नहीं हो सकती / पन्थफ दास के समान मुग्ध (शब्दादि विषयों में आसक्त होने वाला) साधु है / सार्थवाही के समान आचार्य है। दूसरे साधुओं से सुन कर वे भोजनादि से पुष्ट शरीर वाले साधु को
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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