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________________ श्री संठिया जैन प्रमाला ~~~ ~ ~ www wwnwwwwwvvvvvv nwu उसी प्रकार गुरु को चाहिए कि संयम से विचलित होते हुए शिष्य को मधुर शब्दों से समझा कर पुनः संयम मे स्थिर कर दे। (2) धन्ना सार्थवाह और विजय चोर को कथा दूसरा संघट ज्ञात अध्ययन- अनुचित प्रवृत्ति करने वाले को अनर्थ को प्राप्ति होती है और सम्यग् भर्थ की प्राप्ति नहीं होती तथा उचित प्रवृत्ति करने वाले को सम्यग् अर्थ की प्राप्ति है / यह वतलाने के लिए धन्ना सर्थवाह और विजय नामक चोर का दृष्टान्त दूसरे अध्ययन मे दिया गया है। गजगृह नगर में धन्ना नामक एक सार्थनाह रहना था / उसी नगर में विजय नाम का एक चोर रहता था। वह बहुत ही पाप कर्म करने वाला और क्रूर था। एक समय धन्ना सार्थवाह की स्त्री भद्रा ने अपने पुत्र देवदत्त को स्नान मञ्जन करा कर तथा श्राभूषणों से अलंकृत कर अपने दास पंथक के हाथ में देकर बाहर खिलाने के लिए भेजा। पंथक दास देवदत्त को एक जगह बिठा कर दूसरे चालकों के साथ खेलने लग गया। इतने में विजय नामक चोर वहाँआ पहुँचा और देवदत्त बालक को उठा ले गया। एकान्त में ले जा कर उसे मार डाला और उसके सारे आभषण उतार लिए। उसके मृतक शरीर को एक कर में डाल कर मालुककच्छ मे छिप गया। धन्ना सार्थवाह ने पुलिस को खबर दी। पुलिस ने विजय चोर को ढूंढ कर उसे कैदखाने में डाल दिया। ___ एक बार राज्य के कर (महसूल) की चोरी करने के कारण धन्ना सार्थवाह राज्य का अपराधी साबित हुआ। इसलिए उसे भीकैदखाने में डाल दिया और संयोगवश उसी खोड़े में डाला जिसमें आगे विजय चोर था। खोड़ा एक होने के कारण दोनों का भाना जाना, उठना बैठना एक ही साथ होता था। जव धन्ना साथै
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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