SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 471
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाचवा भाग 433 rmmmmmmrrrrrrrr marrrrr . . . . . . ~~ w.. पाणाणुकंपाए,भूयाणुकपाए,जीवाणुकंपाए,सत्ताणुकंपाए ___ अर्थात्- प्राण, भूत, जीव, सत्वों की अनुकम्पा से तुमने अपना पैर ऊपर अधर ही रखा किन्तु नीचे नहीं रखा। उन प्राण (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय,चतुरिन्द्रिय),भूत (वनस्पतिफाय),जीव (पञ्चेन्द्रिय जीव) और सत्वों (पृथ्वीकाय,अपकाय,तेउकाय,वायुकाय) की अनुकम्पा करके तुमने संसार परित्त किया और मनुष्य भायु का पंध किया / अढाई दिन में वह दावानल शान्त हुआ।सव पशु वहाँ से निकल कर चले गये / समने चलने के लिए अपना पैर लम्बा किया किन्तु तुम्हारा पैर अकड़ गया जिससे तुम एकदम पृथ्वी पर गिर पड़े और शरीर में अत्यन्त वेदना उत्पन्न हुई। तीन दिन तक वेदना को सहन कर सौ वर्ष की आयुष्य पूर्ण करके तुम धारिणी रानी के गर्भ में पाये। हे शेष! सिर्यश्च के भव में प्राण, भूत, जीव, सत्त्वों पर अनुकम्पा कर तुमने पहले कभी नहीं प्राप्त हुए सम्यक्त्व रन की प्राप्ति की। हे मेध! अब तुम विशाल कुल में उत्पन्न होकर गृहस्थाबास को छोड़ साधु बने हो तो क्या साधुओं के पादस्पर्श से होने वाले जरा से कष्ट से घबरा गये। ___ भगवान् के उपरोक्त वचनों को सुन फर मेघकुमार को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन होगया। पिर भेघ कुमार ने संयम में दृढ़ होकर भगवान् की आज्ञा से भिक्ष की बारह पडिमा अङ्गीकार की और गणरत्नसंवत्सर वगैरह तप किये। अन्त में संलेखना संथाराफर के विजय नामक अनुत्तर विमान में 33 सागरोपम की स्थिति बाला देव हुआ। वहॉ से चल कर महाविदेह क्षेत्र में पैदा होकर गंयम होगा और मोक्ष जायगा। जिस प्रकार संयम से विचलित होते हुए मेघकुमार को भग वान ने मधुर शब्दों से उपान्तम्भ देकर संयत्र में स्थिर कर दिया
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy