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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला . को यहॉ एक दिन में पहुँचा देगा। राजा भीम की या युक्ति सब को ठीक ऊँची । उसी समय एक दूत को सारी बात समझा फर सुंमुमार नगर के लिये रवाना कर दिया। चलता हुआ दूत कई दिनों में सुंमुमार नगर में पहुँचा । राजा के पास जाकर उसने आमन्त्रणपत्रिका दी। राजा बहुत प्रसन्न हुआ,फिन्तु उसे पढ़ते हुए राजा का चेहरा उदास होगया। कुण्डिनपुर बहुत दूर था और स्वयंवर में सिर्फ एक दिन वाकी था । राजा सोचने लगा अव कुण्डिनपुर कैसे पहुँचा जाय । राजा की चिन्ता उत्तरोतर बढ़ने लगी। नल भी अपने मन में विचारने लगा कि भार्यकन्या दमयन्ती दुबारा स्वयंवर फैसे करेगी। चल कर मुझे भी देखना चाहिये। ऐसा सोच फर उसने कहा महाराज ! आप चिन्ता क्यों करते हैं ? यदि आपकी इच्छा कण्डिनपुर जाने की हो तो श्रेष्ठ घोड़ों पाला एक रथ मंगाइये। मैं अश्वविद्या जानता हूँ। असः आपको माज ही कुण्डिनपुर पहुँचा दूंगा। कुवड़े की बात सुन कर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उसी समय रथ मंगाया । राजा उसमें बैठ गया । कुबड़ा सारथी बना। घोड़े हना से बातें करने लगे। थोड़े ही समय में वे कुण्डिनपुर पहुंच गये । राजा भीम ने उनका उचित सन्मान करके उत्तम स्थान में ठहराया। राजा दषिपर्ण ने देखा कि शहर में स्वयंवर की कुछ भी तैयारी नहीं है फिर भी शान्तिपूर्वक वे अपने नियत स्थान पर ठहर गये । __ अब राजा भीम और दमयन्ती को पूर्ण विश्वास होगया कि यए कुबड़ा कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है किन्तु राजा नल ही है। राजा भीम ने शाम को उसे अपने महल में बुलाया। राजा ने उससे कहा हमने आपके गुणों की प्रशंसा सुन ली है तथा हमने स्वयं भी परीक्षा कर ली है। भाप राजा नल ही हैं। अब हम लोगों पर कृपा कर
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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