SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 403
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिमान्त वोल सपह, पायवां भाग ३६३ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwwwwwwww mmmmmmm आप अपना असली रूप प्रकट कीजिए। राजा भीम की बात के उत्तर में कुब्जरूपधारी नल ने कहाराजन् ! आप क्या कह रहे हैं ? कहाँ राजा नल और कहाँ मैं ? कहाँ उनका रूप सौन्दर्य और कहा मैं कुबड़ा । आप भ्रम में हैं। विपत्ति के मारे रामा नल कहीं जंगलों में भटक रहे होंगे। श्राप वहीं खोज करवाइये। __राजा भीम ने कहा-इस्ति विद्या, अश्वविद्या, सूर्यपाक रसवती विद्या प्रादि के द्वारा मुझे पूर्ण निश्चय होगया कि श्राप राजा नल ही हैं। राजन् ! स्वजनों को अब विशेष कष्ट में डालना उचित नहीं है। ऐसा कहते हुए राजा का हृदय भर आया। राजा नल भी अब ज्यादह देर के लिए अपने आप कोन छिपा सफे। तुरन्त रूपपरावर्तिनी विद्या द्वारा अपने असली रूप में प्रकट होगए। राजा भीम, रानी पुष्पवती और दमयन्ती के हर्षकापारावार न रहा। शहर में इस हर्ष समाचार को फैलते देर न लगी। प्रजा में खुशी छा गई। राजा दधिपणे भी वहॉ आया। न पहिचानने के कारण अपने यहॉ नौकर रखने के लिए उसने राजा नल से क्षमा माँगी। ___ जब यह खबर अयोध्या पहुँची तो वहॉ का राजा कुबेर तत्काल कुण्डिनपुर के लिए रवाना हुआ । जाकर अपने बड़े भाई नल के पैरों में गिरा और अपने अपराधों के लिए क्षमा मांगने लगा। बड़े भाई नल कोवन में भेजने के कारण उसे बहुत पश्चात्तापहो रहा था। अयोध्या का राज्य स्वीकार करने के लिए वह नल से प्रार्थना करने लगा। नल और दमयन्ती को साथ लेकर कुवेर अयोध्या की ओर रवाना हुआ। नल दमपन्ती का आगमन सुन कर अयोध्या की प्रजा उनके दर्शनों के लिए उमड़ पड़ी।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy