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________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग सुभद्रा के इस आर्यजनक फार्य को देख कर सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए । राजा और प्रजा में हर्ष छा गया। लोग सुभद्रा के सतीत्व की प्रशंसा करने लगे । सती सुभद्रा की जयध्वनि से भाकाश गूँज उठा । 1 जयध्वनि के बीच सती एक दरवाजे की ओर बढ़ी । जल छिड़कते ही दरवाजा खुल गया । इस तरह सती ने शहर के तीन दरवाजे खोल दिये। चौथा दरवाजा अन्य किसी सती की परीक्षा के लिये छोड़ दिया । सती सुभद्रा के सतीत्व की चारों ओर प्रशंसा फैल गई । राजा ने सती का यथेष्ट सम्मान किया और धूमधाम के साथ उसे घर पहुँचाया। सुभद्रा की सासू ने तथा उसके सारे परिवार वालों ने भी सारी बातें सुनीं। उन्होंने भी सुभद्रा के सतीत्व की प्रशंसा की और अपने अपने अपराध के लिये उससे क्षमा माँगी । सती के प्रयत्न से बुद्धदास तथा उसके माता पिता एवं परिवार के अन्य लोगों ने जैनधर्म अङ्गीकार कर लिया । ३४५ www अब सुभद्रा का सांसारिक जीवन सुखपूर्वक बीतने लगा । पति, सासू तथा सम्बन्धी उसका सत्कार करने लगे। उसे किसी प्रकार का अभाव नहीं रहा, किन्तु सुभद्रा सांसारिक वासनाओं में ही फंसी रहना नहीं चाहती थी। उसे संसार की अनित्यता का भी ज्ञान था, इसलिये अपने सासू ससुर तथा पति की आज्ञा लेकर उसने दीक्षा ले ली। शुद्ध संयम का पालन करती हुई अनेक वर्षो तक विचर विचर कर भव्य प्राणियों का कल्याण करती रही । अन्त में केवलज्ञान केवलदर्शन उपार्जन कर मोक्ष पधार गई ।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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