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________________ श्री पठिया जैन प्रन्यमाना निकाल कर दरवाजों पर छिड़के तो दरवाजे तत्काल खल जावेंगे।' आकाशवाणी को सुन कर राना ने शहर में घोषणा करनाई कि 'जो सती इस काम को पूरा करेंगी राज्य की ओर से उसका बड़ा भारी सन्मान किया जावेगा।' निर्धारित किये हुए कुँए पर लोगों की भारी भीड़ जमा होने लगी। सभी उत्सुकनापूर्ण नेत्रों से देखने लगे कि देखे कौन सती इस कार्य को पूरा करती है। गजसन्मान और यश प्राप्त करने फी इच्छा से भनेक स्त्रियों ने कुँए से पानी निकालने का प्रपत्र किया किन्तु सब व्यर्थ रहा । कच्चे सूत से बाँध कर चलनी जन कुंए में लटकाई जाती तो सूत टूट जाने से चलानी कुंए में गिर पड़नी अथवा कमी किसी फी चलनी गल तक पहुँच भी जाती तो वापिस खींचते समय सारा जल छिद्रों से निकल जाता। राजा की आज्ञा से रानियों ने भी जल निकालने का प्रयत्न किया किन्तु दे भी सफल न हो सकी। अब तो राजा को बहुत निराशा हुई । राजा की घोषणा सुन कर सुभद्रा अपनी सासू और जल निकालने के लिये कुंए पर जाने की माज्ञा मांगी। क्रुद्ध होती हुई सासू ने कहा- बस रहने दो, तुम कितनी सती हो में अच्छी तरह जानती हूँ। अपने घर में ही बैठी रहो। वहाँ जाकर सब लोगों के सामने हंसी क्यों करवाती हो ? सुभद्रा ने विनय पूर्वक कहा- आप मुझे आज्ञा दीजिए | आपके भाशीर्वाद से मैं अवश्य सफल होऊँगी। सुभद्रा का विशेष भाग्रह देख कर सासू ने भनिच्छापूर्वक माजा दे दी। सुभद्रा कुंए पर आई । कच्चे सूत से चलनी बाँध कर वह आगे बढ़ी। सब लोग टफटकी गाँध कर निनिमेप दृष्टि से उसकी भोर देखने लगे। सुभद्रा ने पलनी को कुंए में लटकापा भौर जल से भर कर बाहर खींच लिया।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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