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________________ २१८ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला wwwnwwwm राजसिंहासन पर बैठे। यह दृश्य देख कर द्रौपदी का हृदय दहल उठा । उसे विश्वास हो गया कि हिंसात्मक युद्ध में विजित भौर विजयीदोनों की हार है और अहिंसात्मक युद्ध में दोनों की विजय है। दोनों का कल्याण है। उस सूने राज्य में द्रौपदी कामन न लगा।शान्ति प्राप्त करने के लिए उसने दीक्षा ले ली। पॉचों पाण्डव भी संसार से विरक्त होकर मुनि बन गए। शुद्ध संयम का आराधन करते हुए यथासमय समाधि पूर्वक काल करके पाँचों पाण्डव मोक्ष में गए। द्रौपदी पाँचवें ब्रह्मदेवलोक में उत्पन्न हुई। वहॉ मे चव फर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगीभोर यहीं से मोक्ष जाएगी। (६) कौशल्या प्राचीन समय में कुशस्थल नाम का अति रमणीय एक नगर या। वहाँ राजा के सब गुणों से युक्त मुसोशल नाम का राजा न्याय नीति पूर्वक राज्य करता था । प्रजा को वह अपने पुत्र के समान समझता था इसी लिए प्रजा भी उसे हृदय से अपना राजा मानती थी। उसकी रानी का नाम अमृतमभाथा। उसका स्वभाव बहुत कोमल और मधुर था। कुछ समय पश्चात् रानी की कुक्षि से एफ कन्या का जन्म हुआ। उसका नाम अपराजिता रक्खा गया। रूप लावण्य में वह अद्भुत थी। अपने माता पिता की इकलौती सन्तान होने के कारण वे उसे बहुत लाड प्यार करते थे । उसका लाढप्यार वाला दूसरा नाम कौशल्याथा। अनेक धायों की संरक्षणता में वह बढ़ने लगी। जब वह स्त्री की सब फलाओं में निपुण होकर युवावस्था को प्राप्त हुई तब माता पिता को उसके अनुरूप वर खोजने फी चिन्ता पैदा हुई। इधर अयोध्या नगरी के अन्दर राजा दशरथ राज्य कर रहे
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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