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________________ भी जैन सिदान्त बोल संग्रह, पांचवा भाग २९६ थे।मातापिताके दीक्षा ले लेने के कारण राजा दशरथ बाल्यावस्था में ही राजसिंहासन पर विठा दिये गये थे। जब वे युवावस्था को प्राप्त हुए और राज्य का कार्य स्वयं सम्भालने लगे तब उनका ध्यान अपने राज्य की वृद्धि करने की ओर गया। अपने अपूर्व पराक्रम से उन्होंने कई राजामों को अपने अधीन कर लिया। एक समय उन्होंने कुशस्थल पर चढ़ाई की। राजा दशरथ की सेना के सामने राजा कोशल की सेना न ठहर सकी। अन्त में सुकोशल पराजित हो गया। राजा मुकोशल ने अपनी कन्या कौशल्या का विवाह राजा दशरथ के साथ कर दिया। इससे दोनों राजाओं का सम्बन्ध बहुत घनिष्ठ हो गया। अयोध्या में आकर राजा दशरण रानी कौशल्या के साथ प्रानन्द पूर्वक समय बिताने लगा। मिथिला का राजा जनक और राजा दशरथ दोनों समवयस्क थे। एक समय में दोनों उत्तरापथ की ओर गये। वहाँ कौतुकमंगल नगर के गना शुभमति की कन्या कैकयी का स्वयंवर हो रहाथा। वे भी वहाँ पहुँचे। राजाओं के बीच में वे दोनों चन्द्र और सूर्य के सपान शोभित हो रहे थे । वस्त्राभूषण से अलंकृत होकर फैकयी प्रतिहारी के साथ स्वयंवर मण्डप में आई। वहॉ उपस्थित राजाओं को देखती हुई बाद मागे बढ़ती गई। राजा दशरथ के पास आकर वह खड़ी होगई और बरमाला उनके गले में डाल दी। यह देख कर दूसरे राजामों को बहुत बुरा लगा। जबर्दस्ती से फैकयी को छीन लेने के लिये वे युद्ध की तय्यारी करने लगे। राजा शुभपति चौर गजा दशरथ भी लड़ाई के लिये तय्यार हुए। राजा दशरथ के रथ में बैठ कर कैकयी उसका सारथी बनी बस ने ऐसी चतुराई से रथ को हकना शुरू किया जिससे राजा दशरथ की लगातार विजय होती गई। अन्त में सब राजाओं को परास्त कर राजा दशरथ ने कैकयी के साथ विवाह किया। प्रसन्न होकर
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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