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________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग २६७ का लोच करके भी तुम अपनी प्रतिज्ञा से छुटकारा पा सकती हो। किन्तु अहिंसाधर्म के जिस महान् श्रादर्शकोतुमने अब तक दुनिया के सामने रक्खा है उसे मलिन न होने दो। उसके मलिन होने पर वह धब्बा मिटना असम्भव हो जाएगा। उस महान् आदर्श के सामने भीम की प्रतिज्ञा भी तुच्छ है। तुम वीराङ्गना और वीर पुत्री हो। मैं तुम से सच्ची वीरता की आशा रखता हूँ। सच्ची वीरता धर्म की रक्षा में है, दूसरे के प्राण लेने में नहीं। द्रौपदी! जिस आत्मिक बल ने तुम्हारी चीरहरण के समय रक्षा की थी वही तुम्हारी प्रतिज्ञाओं को पूरा करेगा। वही तुम्हारे केशों के धब्वे को मिटाएगा। उसी पर निर्भर रहो। पाशविक पल की ओर ध्यान मत दो। कृष्ण की बातों से द्रौपदी कामावेश कम होगया।वह शान्त होकर बोली- आप प्रयत्न कीजिए अगर दुर्योधन मान जाय । श्रीकृष्ण दुर्योधन के पास गए किन्तु उसने उनकी एक भी पात नहीं मानी । उसे अपनी पाशविक शक्ति पर गर्व था। उसने उत्तर दिया-पाँच गॉव तो बहुत बड़ी चीज है। मैं सूई के अग्र-भाग जितनी जमीन भी बिना युद्ध नहीं दे सकता। श्रीकृष्ण द्वारा की गई सन्धि की बातचीत निष्फल हो गई। दुर्योधन की पैशाचिक लिप्सा सभी लोगों के सामने नम रूप में आ गई। दोनों भोर से युद्ध की तैयारियाँ हुई। कुरुक्षेत्र के मैदान में अठारह अक्षौहिणी सेना खून की प्यासी बन कर पा डटी।महान् नरसंहार होने लगा।खून की नदियाँ बह चली। विजय पाण्डवों की हुई किन्तु वह विजय हार से भी बुरी थी। पाँच पाण्डवों को छोड़ कर सारे सैनिक युद्ध में काम भागए। मेदिनी लाशों से भर गई। देश की युवाशक्ति मटियामेट हो गई। लाखों विधवाओं, घद्धों और बालकों के क्रन्दन से भरी इन्द्रप्रस्थपुरी में युधिष्ठिर
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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