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________________ ၃ ၃ခု श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला mmar.mmm .. . arwwwr. वमुमती को उठाने के लिए वह आगे बढ़ी। इतने में बहुत से बन्दर वेश्या पर टूट पड़े। उसके शरीर को नोच डाला। वेश्या सहायता के लिए चिल्लाई किन्तु उसके नौकर तथा समर्थक बन्दरों से डरकर पहले ही भाग चुके थे। कोई उसकी सहायता के लिए न आया। ___ बन्दरों ने वेश्या को लोहूलुहान कर दिया। उसके करुण चीत्कार को सुन कर वसुमती से न रहा गया। उसने बन्दरों को डाट कर कहा- हटो! माता कोछोड़ दो। इसे क्यों कष्ट दे रहे हो? वसमती के डाटते ही सभी बन्दर भाग गए। वेश्या के पास आकर वसुमती ने उसे उठाया और सान्त्वना देते हुए उसके शरीर पर हाथ फेरा । वेश्या के सारे शरीर में भयङ्कर वेदना हो रही थी किन्तु वसुमती का हाथ लगते ही शान्त हो गई। कृतज्ञता के भार से दवी हुई वेश्या ऑखें नीची किए सोच रही थी कि अपकारी का भी उपकार करने वाली यह कोई देवी है। इसके हाथ का स्पर्श होते ही मेरी सारी पीड़ा भाग गई। वास्तव में यह कोई महासती है। बन्दरों के चले जाने पर वेश्या के परिजन और समर्थक फिर वहाँ इकट्ठे हो गए और विविध प्रकार से सहानुभूति दिखाने लगे। वेश्या के हृदय में वसमतीद्वारा किया हुआ उपकार घर कर चुका था इस लिए सूखी सहानुभूति उसे अच्छी न लगी। __अपने व्यवहार पर लज्जित होते हुए वेश्याने वसुमती से कहादेवि ! सांसारिक वासनाओं में पली हुई होने के कारण मैं आपके वास्तविक स्वरूप को न जान सकी। मैंने आपकी शिक्षाको मजाक समझा, सदाचार को ढोंग समझा। धर्म, न्याय और सतीत्व का मेरे हृदय में कोई स्थान न था। इसी कारण अज्ञानतावश मैंने आप के साथ दुर्व्यवहार किया। अहिंसा और सतीत्व का साक्षात् आदर्श रख कर आपने मेरी आँखें खोल दीं। मैं आपके ऋण से कभीमुक्त
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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