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________________ marwood श्री जैन सिद्धान्त चोल संग्रह, पांचवां भाग २२१ man wenn mann an mmmmmmmmmmmmmmm भावश्यकता नहीं है। यह सोच कर उसने रथी से कहा पिताजी!शान्त रहिए।क्रोध और हिंसाको हृदय में कभी स्थान नदेना चाहिए। क्या आप माताजी की शिक्षा को भूल गए? मेरी 'रक्षा के लिए तलवार की आवश्यकता नहीं है। धर्म अपनी रक्षा 'स्वयं करता है। आप तलवार को म्यान में कर लीजिए। रथी अधीर हो उठा। उसे विश्वास न था कि ऐसे समय में भी अहिंसा काम कर सकती है। उसने कहा- बेटी ! तेरा विरोध करने का साहस मुझ में नहीं है, इस लिए बिना सोचे समझे मान लेता हूँ, किन्तु क्या यह उचित कहा जा सकता है कि मेरी वेंटी पर मेरी आँखों के सामने अत्याचार हो और मैं निर्जीव स्तम्भ की तरह खड़ा रहूँ। रक्षा के लिए प्रयत्न न करूं । इस समय आतताई को दण्ड देने के सिवाय मेरा और क्या कर्तव्य हो सकता है ? पिताजी! आध्यात्मिक बल में शारीरिक बल से अनन्तगुणी शक्ति है मुझे इस बात पर दृढ़ विश्वास है, इस लिए पाशविक वल मेरा कुछ नहीं कर सकता। आप किसी बात की चिन्ता मत कीजिए। मैं पहले कह चुकी हूँ, धर्म अपनी रक्षा स्वयं करता है। - रथीको तलवार म्यान में रखते हुए देख कर वेश्या का साहस और बढ़ गया । वह सोचने लगी कि वसुमती केवल ऊपर से विरोध करती है, वास्तव में मेरे साथ जाना चाहती है। उसने फिर खींचातानी शुरू की। वसुमती फोशारीरिक बल पर विश्वास न था, इसलिए हथियार द्वारा या दूसरे किसी उपाय से विरोध करना उसने उचित न समझा। आत्मशक्ति पर विश्वास करके वह वहीं बैठ गई और कहने लगी-जब मैं नहीं जाना चाहती तोमुझे कौन लेजा सकता है? वेश्याने सोचाअव इसे उठाकर पालकी में डाल देना चाहिए।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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