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________________ १७० wommmmmmmm श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तकदस भवनपति देवों में सिर्फ एक चौथा भांगा (महास्रव महाक्रिया अल्पवेदना अल्पनिर्जरा) पाया जाता है। इनमें असातावेदनीय का उदय प्रायः नहीं होने से वेदना भी अल्प है और निर्जरा भी अल्प है । इसी प्रकार वाणव्यन्तर,ज्योतिषी और वैमानिक देवों में भी सिर्फ एक चौथा भांगा पाया जाता है। एकेन्द्रिय, वेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय तिर्यच और मनुष्य सभी में ये सोलह ही भांगे' पाये जाते हैं। (भगवती सत्र शतक १६ उद्देशा ४) ८६९- वचन के सोलह भेद __ मन में रहा हुआ अभिप्राय प्रकट करने के लिए भाषावर्गणा के परमाणुओं को बाहर निकालना अर्थात् वाणी का प्रयोग फरना वचन कहलाता है। इसके सोलह भेद हैं (१)एकवचन-किसी एक के लिये कहा गयावचन एक वचन कहलाता है। जैसे- पुरुपः (एक पुरुष)। (२) द्विवचन- दो के लिए कहा गया वचन द्विवचन कहलाता है। जैसे--पुरुषौ (दो पुरुष)। (३) बहुवचन-दो से अधिक के लिए कहा गया वचन, जैसे- पुरुषाः (तीन या उससे अधिक पुरुष)। (४) स्त्रीवचन-स्त्रीलिंग वाली किसीवस्तु के लिए कहा गया वचन । जैसे- इयं स्त्री (यह औरत)। (५) पुरुषवचन- किसी पुल्लिंग वस्तु के लिए कहा गया वचन | जैसे- अयं पुरुपः (यह पुरुप)। (६) नपुंसकवचन - नपुंसकलिंग वाली वस्तु के लिए कहा गया वचन । जैसे- इदं कुण्डम् (यह कुण्ड)। कुण्ड शब्द संस्कृत में नपुंसक लिंग है। हिन्दी में नपुंसकलिंग नहीं होता।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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