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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग १७१ wwwmorrorm ~~ rrrrrrrammmam (७) अध्यात्मवचन- मन में कुछ और रख कर दूसरे को ठगने की बुद्धि से कुछ और कहने की इच्छा होने पर भीशीघ्रता के कारण मन में रही हुई बात का निकल जाना अध्यात्मवचन है। (८) उपनीतवचन-प्रशंसा करना, जैसे अमुक स्त्री सुन्दर है। (8)अपनीतवचन-निन्दात्मक वचन जैसे यह स्त्री कुरूपा है। (१०) उपनीतापनीत वचन- प्रशंसा करके निन्दा करना, जैसे- यह स्त्री सुन्दर है किन्तु दुष्ट स्वभाव वाली है। (११)अपनीतोपनीत वचन-निन्दा के बाद प्रशंसा करना। जैसे यह स्त्री कुरूपा है किन्तु सुशील है। (१२) अतीतवचन-भूत काल की बात कहना अतीत वचन है। जैसे मैंने अमुक कार्य किया था। (१३) प्रत्युत्पन्न वचन- वर्तमान काल की बात कहना प्रत्युत्पन्न वचन है। जैसे- वह करता है। वह जाता है। (१४)अनागत वचन-भविष्य काल की बात कहना भना गत वचन है। जैसे- वह करेगा। वह जायगा। (१५) प्रत्यक्ष वचन-प्रत्यक्ष अर्थात् सामने की बात कहना। जैसे सामने उपस्थित व्यक्ति के लिए कहना 'यह'। (१६) परोतवचन- परोक्ष अथोत् पीठ पीछे हुई बात को कहना,जैसे सामने अनुपस्थित व्यक्ति के लिए कहना'वह'इत्यादि। ये सोलह वचन यथार्थ वस्तु के सम्बन्ध में जानने चाहिएं। इन्हें सम्यक् उपयोग पूर्वक कहे तो भाषा प्रज्ञापनी होती है। इस प्रकार की भाषा मृषाभाषा नहीं कही जाती। (पमवणा पद ११ सुत्र ३२) (भाचाराग श्रुत० २ चूलिका १ अध्य० १३ उद्देशा १) ८७०- मेरु पर्वत के सोलह नाम मेरु पर्वत मध्य लोक के बीच में है। उसके सोलह नाम हैं(१) मंदर (२) मेरु (३) मनोरम (४) सुदर्शन (५) स्वयंप्रम
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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