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________________ 'श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग १६७ बन्दरगाह कहते हैं। (8)निगम-जहाँ अधिकतर वाणिज्य करने वाले महाजनों की आबादी हो उसे निगम कहते हैं। (१०) राजधानी- जहाँ राजा स्वयं रहता हो। (११)आश्रम- जंगल में तपस्वी, सन्यासी आदि के ठहरने का स्थान आश्रम कहलाता है। (१२) संनिवेश- जहाँ सार्थवाह अर्थात् बड़े बड़े व्यापारी बाहर से आकर उतरते हों। (१३ ) संवाह-पर्वत गुफा आदि में जहाँ किसानों की आबादी हो अथवा गाँव के लोग अपने धन माल आदि की रक्षा के लिए जहाँ जाकर छिप जाते हैं उसे संवाह कहते हैं। (१४) घोष-जहाँ गाय चराने वाले गूजर लोग रहते हैं। (१५)अंसियं-गॉव के बीच की जगह को अंसियंकहते हैं। (१६) पुरभय- दसरे दूसरे गाँवों के व्यापारी जहाँ अपनी वस्तु बेचने के लिए इकट्ठे होते हैं उसे पुरभय कहते हैं। आजकल इसे मण्डी कहा जाता है। ___ उपर लिखे सोलह ठिकानों में से जहाँ आबादी के चारों ओर परकोटा है और परकोटे के बाहर आबादी नहीं है वहाँगरमीअथवा सरदी में साधु को एक मास ठहरना कल्पता है। ऊपर लिखे ठिकानों में से परकोटे वाले स्थान में यदि परकोटे के बाहर भी आबादी है तो वहाँ साधु गरमी तथा सरदी में दो महीने ठहर सकता है, एक महीना कोट के अन्दर और एक महीना बाहर | अन्दर रहते समय गोचरी भी कोट के अन्दर ही करनी चाहिए और बाहर रहते समय बाहर। साध्वी के लिए साधु से दुगुने काल तक रहना कल्पता है अर्थात् कोट के बाहर बिना आबादी वाले स्थान में दोमास और आबादी
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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