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________________ . narraim . श्री मेठिया जैन ग्रन्थमाला .... ..... ... .. लिए जायें उन्हें योग पिण्ड कहते हैं। __ (१६)मूलकर्म-गर्भस्तम्भ, गर्भाधान, गर्भपात आदि संसार सागर में भ्रमण कराने वाली सावध क्रियाएं करना मूलकर्म है। नोट- उत्पादना के दोष साधु से लगते हैं । इनका निमित्त साधु ही होता है। (प्रवचनमारोद्धार गाया १६७, ५६८) (वर्मपग्रह अधिकार ३ गाथा २२) (पिण्डनियुक्ति गाथा ४०८, ४०६) (पचाशक १३वाँ, गाथा १८-१९) (पिगडविशुसि) ८६७- साधु को कल्पनीय ग्रामादि १६स्थान ___ विहार करते हुए साधु या साध्वी को नीचे लिखे सोलह स्थानों में रहना कल्पता है। (१)ग्राम- जहाँ गज्य की तरफ से अठारह प्रकार का कर (महसूल) लिया जाता हो उसे ग्राम कहते हैं। (२) नगर- जहॉ गाय बैल श्रादि का कर न लिया जाता हो ऐसी बड़ी आबादी को नगर कहते हैं। (३) खेड (खेटक)- जिस आबादी के चारों ओर मिट्टी का परकोटा हो उसे खेड़ या खेड़ा कहते हैं। (४) कब्बड (कवेट)- थोड़ी आबादी वाला गॉव । (५) मण्डप- जिम स्थान से गाँव अढाई फोस की दूरी पर हो उसे मण्डप कहते हैं। ऐसे स्थान में वृक्ष के नीचे या प्याऊ आदि में साधु ठहर सकता है। (६)पाटण (पत्तन)- व्यापार वाणिज्य का बड़ा स्थान, जहाँ मव वस्तुएं मिलती हों उसे पाटण कहते हैं। (७) आगर (आकर)- सोना चॉदी आदि धातुओं के निकलने की खान को आगर कहते हैं। (८) द्रोणमुग्व- समुद्र के किनारे की आगदी जहाँ जाने के लिए जल और स्थल दोनों प्रकार के मार्ग हो । आज कल इस
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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