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________________ १२८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (४)संयम यात्रा के निर्वाहार्थ जो सदा विशुद्ध,भिक्षा लब्ध एवं अज्ञात कुलों से थोड़ा थोड़ा ग्रहण किया हुश्रा आहार पानी भोगता है और जो आहार के मिलने तथा न मिलने पर स्तुति और निन्दा नहीं करता वह साधु संसार में पूजनीय होता है। (५) संस्तारक, शय्या, आसन, भोजन और पानी आदि के अधिक लाभ हो जाने पर भी जो अल्प इच्छा और अमूर्छा भाव रखता है और सदा काल सन्तोषभाव में रत रहता है, तथा अपनी आत्मा को सभी प्रकार से सन्तुष्ट रखता है वह साधु संसार में पूजनीय होता है। . .. (६)धन प्राप्ति श्रादि की अभिलाषा से मनुष्य लोहमय तीक्ष्ण वाणों को सहन करने में समर्थ होता है परन्तु जो साधु विना किसी लोभ लालच के कर्णकटु वचन रूपी कण्टकों को सहन करता है वह निःसन्देह पूजनीय हो जाता है। (७) शरीर में चुभे हुए लोह कण्टक तो मर्यादित समय तक ही दुःख पहुँचाने वाले होते हैं और फिर वे सुयोग्य वैद्य द्वारा सुख पूर्वक निकाले जा सकते हैं किन्तु वचन रूपी कण्टक अतीव दुरुद्धर है अर्थात् हृदय में चुभ जाने के बाद वे बड़ी कठिनता से निकलते हैं। कठोर वचन रूपी कण्टक परम्परया वैर भाव को बढ़ाने वाले एवं महा भय को उत्पन्न करने वाले होते हैं। (८) समूह रूप से सन्मुख आते हुए कटुवचन महार श्रोत्र मार्गसे हृदय में प्रविष्ट होते ही दौमनस्य भाव उत्पन्न कर देते हैं अर्थात कटु वचनों को सुनते ही हृदय में दुष्ट भावना उत्पन्न हो जाती है परन्तु जोसंयममागे मंशूरवीर,इन्द्रिया पर विजय प्राप्त करने वाला पुरुष इन कटु वचनों के प्रहार को शान्ति से समभाव पूर्वक सहन कर लेता है वह संसार में पूजनीय हो जाता है। (B)जो मुनि पीठ पीछे या सामने किसी की निन्दा नहीं करता
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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