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________________ श्रीजैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवां भाग १२७ कार्य को नहीं छोड़ता। (१४) विनीत शिष्य ज्ञानवान होता है। किसी समय बुरे विचारों के आजाने पर भी वह कुकार्य में प्रवृत्ति नहीं करता। (१५) बिना कारण गुरु के निकट या दूसरी जगह इधर उधर नहीं घूमता फिरता। उपरोक्त गुणों वाला पुरुष विनीत कहलाता है। (उत्तराध्ययन अध्ययन ११ गाथा १०-१३) ८५३-पूज्यताको बतलाने वाली पन्द्रह गाथाएं दशवकालिक मूत्र के विनय ममाधि नामक नवें अध्ययन के तीसरे उद्देशे में पूज्यता को बतलाने वाली पन्द्रह गाथाएं आई है। उन गाथाओं में बतलाया गया है कि किन किन गुणों के धारण करने से साधु पूज्य ( पूजनीय ) बन जाता है। उन गाथाओं का भावार्थ क्रमशः नीचे दिया जाता है (१) जिस प्रकार अग्निहोत्री ब्राह्मण अग्नि की पूजा करता है उसी प्रकार वुद्धिमान् शिप्य को प्राचार्य की पूजा यानी सेवा शुश्रषा करनी चाहिये क्योंकि जोप्राचार्य की दृष्टि एवं इंगिताकार आदि कोजान कर उनके भावानुकूल चलता है वह पूजनीय होता है। (२) जो प्राचारप्राप्ति के लिये विनय करता है, जो भक्तिपूर्वक गुरुवचनों को सुन कर स्वीकार करता है तथा गुरु के कथनानुसार शीघ्र ही कार्य सम्पन्न कर देता है, जो कभी भी गुरु महाराज की आशातना नहीं करता वह शिष्य संसार में पूज्य होता है। (३) अपने से गुणों में श्रेष्ठ एवं लघुवयस्क होने पर भी दीक्षा में बड़े मुनियों की विनय भक्ति करने वाला, विनय की शिक्षा से सदा नम्र एवं प्रसन्नमुख रहने वाला, मधुर और सत्य बोलने वाला, आचार्य को वन्दना नमस्कार करने वाला एवं उनके वचनों को कार्यरूप से स्वीकार करने वाला शिष्य पूजनीय होता है।
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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