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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पांचवा भाग १२६ wwmmmmmmmmmmmmwwwwwwwwwwwwwwwwwwww ~~~~~~~~~~ और परपीडाकारी, निश्चयकारी एवं अप्रियकारी वचन भी नहीं बोलता वह साधु पूजनीय हो जाता है। (१०)जो साधु किसी प्रकार का लोभ लालच नहीं करता, मंत्र तंत्राादि ऐन्द्रजालिक झगड़ों में नहीं पड़ता, माया के फन्दे में नहीं फंसता, किसी की चुगली नहीं करता, संकट से घबराकर दीनता धारण नहीं करता, दूसरों से अपनी स्तुति नहीं करवाता औरन अपने मुंह से अपनी स्तुति करता है तथा खेल, तमाशे आदि कलाओं में कौतुक नहीं रखता है वह साधु पूजनीय हो जाता है। ___ (११) हे शिष्य ! गुणों से साधु और अगुणों से असाधु होता है अत एव तुझे साधु गुणों को तो ग्रहण करना चाहिये और अगुणों को सर्वथा छोड़ देना चाहिये क्योंकि अपनी आत्मा को अपनी आत्मा से ही समझाने वाला तथा राग द्वेष में समभाव रखने वाला गुणी साधु ही पूजनीय होता है। (१२) जो साधु बालक, वृद्ध, स्त्री, पुरुष, दीक्षित और गृहस्थ मादिकी हीलना(निन्दा),खिंसना (बारम्बार निन्दा)नहीं करता तथा क्रोधादि कषायों से दूर रहता है वह पूजनीय हो जाता है। (१३)जो शिष्य आचार्य को विनय भक्ति आदि से सम्मानित करते हैं वे स्वयं भी प्राचार्य से विद्यादान द्वारा सम्मानित होते हैं। जिस प्रकार माता पिता अपनी कन्या को सुशिक्षित कर योग्य वर के साथ पाणिग्रहण द्वारा श्रेष्ठ स्थान में पहुंचा देते हैं, उसी प्रकार आचार्य भी अपने विनीत शिष्यों को सूत्रार्थ का ज्ञाता बना कर आचार्यपद जैसे ऊँचे पदों पर प्रतिष्ठित कर देते हैं । जो सत्यवादी,जितेन्द्रिय औरतपस्वी साधु ऐसे सम्मान योग्य आचार्यों का सम्मान करता है वह संसार में पूज्य हो जाता है। (१४) जो मुनि पूर्ण बुद्धिमान् , पाँच महाव्रतों का पालक, तीन गुप्तियों का धारक और चारों कषायों पर विजय प्राप्त करने
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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