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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला देवों में और उत्कृष्ट पहले देवलोक तक उत्पन्न हो सकते हैं। (४)भखण्डित संयमासंयम (अविराधकश्रावक)जघन्य पहले और उत्कृष्ट बारहवें अच्युत देवलोक तक उत्पन्न हो सकते हैं। (५)खण्डित संयमासंयम (विराधक श्रावक) जघन्य भवनपति देवों में और उत्कृष्ट ज्योतिषी देवों तक उत्पन्न हो सकते हैं। (६)असझी (अकाम निर्जरा करने वाले)जघन्य भवनपति देवों में और उत्कृष्ट वाणव्यन्तर देवों तक उत्पन्न हो सकते हैं। (७) बाल तपस्वी जघन्य भवनपति देवों में और उत्कृष्ट ज्योतिषी देवों तक उत्पन्न हो सकते हैं। (८)कांदर्पिक (कुतूहली साधु) जघन्य भवनपतियों में और उत्कृष्ट पहले देवलोक तक उत्पन्न हो सकते हैं। (8)चरक, परिव्राजक (त्रिदण्डी) जघन्य भवनपति देवों में और उत्कृष्ट पाँचवें ब्रह्मलोक तक उत्पन्न हो सकते हैं। (१०)किन्विषिक (व्यवहार से चारित्र को धारण करने वाले किन्तु भाव से ज्ञान तथा ज्ञानियों काअवर्णवाद करने वाले कपटी) जघन्य भवनपति देवों में और उत्कृष्ट छठे देवलोक तक। (११)देशविरत चारित्र कोधारण करने वाले तियेचजघन्य भवनपतियों में और उत्कृष्ट पाठवें सहस्रार देवलोक तक।. (१२)आजीवक मतानुयायी (गोशालक के शिष्य) जघन्य भवनपतियों में और उत्कृष्ट वारहवें अच्युत देवलोक तक। (१३ ) आभियोगिक (मन्त्र तन्त्र आदि करने वाले) जघन्य भवनपतियों में और उत्कृष्ट वारहवें देवलोक तक उत्पन्न हो सकते हैं। (१४) दर्शनभ्रष्ट स्वलिनी साधु जघन्य भवनपति देवों में और उत्कृष्ट ऊपर के ग्रैवेयकों तक उत्पन्न हो सकते हैं। (भगवती शतक १ उद्देशा २)
SR No.010512
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages529
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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