SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाय २७१ लगेगी। अथवा वस्तु शास्त्र के अनुसार भूमि आदि का ठीक परि. णाम किया जा सकता है। (१०) आपूपिक-हलवाई अपूप (मालपूर) यादि को विना गिने ही उनका परिमाण या गिनती बता सकता है। . (११) घटकार-घड़े बनाने में निपुण कुम्हार पहले से इतनी ही प्रमाणयुक्त मिट्टी उठा कर चाक पर रखता है कि जितने से घड़ा वन जाय । (१२)चित्रकार-नाटक की भूमिका को विना देखे ही नाटक के प्रमाण को जान सकता है अथवा कुञ्चिका के अन्दर इवना ही रंग लेता है जितने से उसका कार्य पूर्ण हो जाय अर्थात् चित्र अच्छी तरह रंगा जा सके। ये उपरोक्त बारह व्यक्ति अपने अपने कार्य में इतने निपुण हो जाते हैं-कि इनकी कार्य कुशलता को देखकर लोग आश्चर्य करने लगते है। बहुत समय तक अपने कार्य में अभ्यास करते रहने के कारण हनको ऐसी कुशलता प्राप्त हो जाती है। इस लिए यह कम्मिया (कर्मजा) घुद्धि कहलाती है। (नन्दीपत्र) (आवश्यक नियुक्ति दीपिका) ७६३-आजीवक के बारह श्रमणोपासक (१)ताल (२) तालप्रलम्ब (३) उद्विद्ध (४) संविद्ध (१) अवविद्ध (६) उदय (७) नामोदय (5) नर्मोदय (8) अनुपालक (१०) शंख पालक (११) अयबुल (१२) कातर। इनका देव गोशालक था माता पिता की सेवा करना ये श्रेष्ठ समझते थे। ये उंचर, बड़, बेर,सतर और पीपल के फलों और प्याज, लहसुन और कन्द मूल के त्यागी होते थे। अनिलोच्छित । और विना नाथे हुए वैलों से त्रस प्राणियों की हिंसारहित व्यापार करके अपनी आजीविका चलाते थे। (भगवती शतक ८ उद्देशा ५)
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy