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________________ २७८ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाना की कुशलता की वारवार प्रशंसा करने लगा और कहने लगा कि यदि तूने इन कोअधोमुख न गिराया होता तो मैं तुझे अवश्य मार देता। ऐसा कहता हुआ चोर अपने घर चला पाया। पयाकार सांध लगाना और मग के दानों को अधोमुख डाल देना ये दोनों कम्मिया (कर्मजा) बुद्धि के दृष्टान्त हैं। बहुत दिनों तक कार्य करते रहने के कारण चोर और किसान को यह कुशलता प्राप्त होगई थी। (३) कौलिक-अपने अभ्यास के कारण जुलाहा अपनी मुट्टी में तन्तुओं को लेकर यह पतला सकता है कि इतने तन्तुओं से कपड़ा बन जायगा। (४) दर्वी-चाटु बनाने वाला यह बतला सकता है कि इस चाटु में इतना अन समायेगा। (५) मौक्तिक-मणिहार (मणियों को पिरोने वाला) मोती को आकाश में ऊपर फेंक कर नीचे सूबर के बाल को या तार आदि को इस तरह खड़ा रख सकता है कि ऊपर से आते हुए मोती के छेद में वह पिरोया जा सके। (६) घृतविक्रयी-घी बेचने वाला अभ्यस्त पुरुष चाहे वो गाड़ी में बैठा हुआ ही इस तरह से घी को नीचे डाल सकता है कि वह घी गाड़ी के कुण्डिकानाल में ही जाकर गिरे। (७) प्लवक-उछलने में कुशल व्यति आकाश में उछलना आदि क्रियाएं कर सकता है। (८) तुन्नाग-सीने के कार्य में चतुर दर्जी कपड़े को इस तरह सी सकता है कि दूसरे को पता ही न चले कि यह सीया हुआ है यानहीं। (६) वर्द्धकि-पढ़ई अपने कार्य में विशेष अभ्यस्त होने से विना नापे ही वतला सकता है कि गाड़ी बनाने में इतनी लकड़ी
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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