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________________ २८० श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला ७६४-निश्चय और व्यवहार से श्रावक के बारह भाव व्रत चारित्र के दो भेद हैं-निश्चय चारित्र और व्यवहार चारित्र । व्यवहार चारित्र के दो भेद हैं-सर्वविरति और देशविरतिप्राणातिपात विरमण आदि पाँच महाव्रतों को सर्वविरति कहते हैं । पाँच अणुव्रत, तीन गुणवत, चार शिवावत रूप श्रावक के बारह व्रतों को देशविरति कहते हैं । व्यवहार चारित्र पुण्य रूप सुख का कारण है। इससे देवगति की प्राति होती है और यह व्यवहार चारित्र अभव्य जीवों के भी हो सकता है, किन्तु इससे सकाम निर्जरा नहीं होती और न यह मोक्ष का ही कारण है । निश्चय सहित व्यवहार चारित्र मोक्ष का कारण बताया गया है, इस लिए मुमुक्षु आत्मा कोनिश्चय और व्यवहार दोनों चारित्रों का पालन करना चाहिए। शरीर, इन्द्रिय, विषय, कषाय और योग को आत्मा से मिल जान कर छोड़ना, आत्मा अपौद्गलिक और अनाहारी है, आहार पौद्गलिक है और वह प्रात्मा के योग्य है ऐसा जान कर पौद्गलिक हार का त्याग करना और तप का सेवन करना निश्चय चारित्र है। देशविरति के बारह व्रतों का स्वरूप निश्चय और व्यवहार से निम्नलिखितानुसार है- . (१) प्राणातिपात विरमण प्रत-दूसरे जीवों को प्रात्मतुल्य समझना, उन्हें दुःख न पहुँचाना और उनकी रक्षा करना, उन पर दया भाव रखना व्यवहार प्राणातिपात विरमण व्रत है। कर्मवश अपना आत्मा दुखी हो रहा है, उसे कर्मों से छुड़ाना, आत्मगुणों की रक्षा करना और उन्हें बढ़ाना यह स्वदया है । बन्ध हेतु के परिणामों को रोक कर आत्मगुणों के स्वरूप को प्रकट करना एवं प्रकट हुए गुणों को स्थिर रखना, इस प्रकार भात्मस्वरूप में
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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