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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोलसग्रह, चौथा भाग - १५३ मनुष्यों की सक्रियता । सक्रिय जीवों में से कुछ जीव उसी भव में मुक्ति प्राप्त करते हैं और कुछ नहीं, इत्यादि का वर्णन है। (२)३०-योज राशि रूप नैरयिकों की उत्पत्ति का कथन । कृतयुग्म और व्योज राशि का पारस्परिक सम्बन्ध, ज्योज और द्वापरयुग्म राशि का पारस्परिक सम्बन्ध । श्री पनवणा सूत्र के व्युत्क्रान्ति पद की भलामण। (३) उ. द्वापरयुग्म राशि प्रमाण नैरयियों का उत्पाद, द्वापरयुग्म और कृतयुग्म का पारस्परिक सम्बन्ध | (४) उ०-कल्योज प्रमाण नैरयिकों का उत्पाद, कल्योज और कृतयुग्म राशि का पारस्परिक सम्बन्ध । (५) उ०-कृष्णलेश्या वाले कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज राशि प्रमाण नैरयिकों की उत्पत्ति का कथन किया गया है। नवें से अट्ठाईसवें उद्देशे तक नील, कापोत, तेजो. पद्म और शुक्ललेश्या प्रत्येक के चार चार उद्देशे हैं। इनमें सामान्य चार उद्देशे हैं और छालेश्याओं की अपेक्षा २४ उद्दशे हैं । इसी प्रकार भवसिद्धिक की अपेक्षा २८, अभवसिद्धिक की अपेक्षा २८, कृतयुग्म राशि प्रमाण सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा २८, कृतयुग्म राशि प्रमाण मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा २८कृतयुग्म राशि प्रमाण कृष्णपाक्षिक की अपंक्षा २८, कृतयुग्म राशि प्रमाण शुक्लपाक्षिक की अपेक्षा २८ उद्देशे कहे गए हैं। इस प्रकार इस शतक में कुल १६६ उद्देशे हैं। सम्पूर्ण भगवती में कुल १३८ शतक और १९२५ उद्देशे हैं। प्रकृष्ट ज्ञान और दर्शन के धारक केवलज्ञानियों ने इस भगवती सूत्र के अन्दर दो लाख अट्ठासी हजार पद कहे हैं और अनन्त (अपरिमित) भाव और अभावों (निषेधों) का कथन किया है । सूत्र के अन्त में संघ की स्तुति की गई है। तप, नियम और विनय से संयुक्त, निर्मल ज्ञान रूपी जल से परिपूर्ण, सैकड़ों हेतु रूप महान्
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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