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________________ १८४ श्रो सेठिया जेन प्रन्थमाला वेग वाला, अनेक गुण सम्पन्न होने से विशाल यह संघ (साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका) रूपी समुद्र सदा जय को प्राप्त हो सूत्र की समाप्ति के पश्चात् इस सूत्र को पढ़ने की पर्यादा इस प्रकार पतलाई है: इस सूत्र में कुल १३८ शतक है अर्थात् पहले शतक से ३२ शतक तक अवान्तर (पेटा)शतक नहीं हैं। तेतीसवें शतक से उनतालीसवें शतक तक अर्थात् सात शतकों में बारह बारह अवान्तर शतक हैं। चालीसवे शतक में २१ अवान्तर शतक हैं । इकतालीसवें शतक में अवान्तर शतक नहीं हैं। कुल मिला कर १३८ शतक है । इसके पठन पाठन के लिए समय की व्यवस्था इस प्रकार वतलाई गई है पहले से तीसरे शतक तक दो दो उद्देशे प्रतिदिन, चौथे शतक के आठ उद्देशे एक दिन में और दूसरे दिन में दो उद्देशे पढ़ने चाहिए। नवें शतक से आगे प्रतिदिन शिष्य जितना ग्रहण कर सके उतना पढ़ाना चाहिए । उत्कृष्ट रूप से एक दिन में एक शतक, मध्यम रूप से एक शतक दो दिन में और जघन्य रूप से एक शतक तीन दिन में पढ़ाना चाहिए। पन्द्रहवाँ गोशालक का शतक, एक ही दिन में पढ़ाना चाहिए, यदि एक दिन में पूरा न हो तो दसरे दिन श्रायम्बिल करके उसे पूरा करना चाहिए। यदि दूसरे दिन भी पूरा न हो सके तो तीसरे दिन फिर आयम्बिल करके ही पूरा करना चाहिए। २१वं, २२ और २३ वेशक को एक एक दिन में पूरा करना चाहिए । चौवीसवें शतक को प्रतिदिन ६, उद्देशे पढ़ाकर दोदिन में पूरा करना चाहिये। इसी तरह २५वें शतक को भी दो दिन में पूरा करना चाहिये । बन्ध शतक आदि आठ शतक एक दिन में, श्रेणी शतक आदि चारह शतक एक 'दिन में, एकेन्दिय के बारह महायुग्मशतक एकदिन में पढ़ाने चाहिए।
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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