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________________ . १८२ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला में चौरिन्द्रिय जीवों की गति, स्थिति आदि का वर्णन किया गया है। शेष अधिकार और वर्णन शैली तेतीसवे शतक की तरह है। उनतालीसवाँ शतक इसमें बारह अन्तर्शतक हैं जिनमें १३२ उद्देशे हैं। इनमें असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय की गति, स्थिति आदि का कथन किया गया है । वर्णन शैली और अधिकार तेतीसवें शतक की तरह ही है। ___चालीसवाँ शतक इस शतक के अन्तर्गत २१ शतक हैं। प्रत्येक शतक में ग्यारह ग्यारह उद्दशे हैं। पहले शतक के पहले उद्देशे में निम्न विषय वर्णित हैं:-कृतयुग्मकृतयुग्म रूप संज्ञी पञ्चेन्द्रिय का उत्पाद, कर्म का वन्ध,संज्ञा,गति आदि का वर्णन है। दूसरे शतक से इक्कीसवें शतक तक कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजोलेश्या, शुक्ल लेश्या वाले पंचेन्द्रिय. भवसिद्धिक सामान्य जीव, भवसिद्धिक कृष्णा, नील, कापोत, तेजो, पा, शुक्ल लेश्या वाले और अभवसिद्धिक की अपेक्षा कृष्ण, नील आदि लेश्या वाले पंचेन्द्रिय की गति, स्थिति आदि का वर्णन है अर्थात् सात शतकों में औधिक (समुच्चय)रूप से वर्णन किया गया है। सात शतक भवसिद्धिक पंचेन्द्रिय की अपेक्षा और सात शतक अमवसिद्धिक पंचेन्द्रिय की अपेक्षा से कहे गये हैं। इस तरह संज्ञी पंचेन्द्रिय महायुग्म के २१ शतक हैं। इकतालीसवाँ शतक इकतालीसवें शतक में १९६ उद्देशे हैं जिनमें निम्न विषय हैं:कृतयुग्म आदि राशि के चार मेद, कृतयुग्म नैरयिकों का उपपात, उपपात का अन्तर, कृतयुग्म राशि और त्र्योज का पारस्परिक सम्बन्ध, कृतयुग्म और द्वापरयुग्म राशि का तथा कृतयुग्म और • कन्योन राशि का पारस्परिक सम्बन्ध । सलेश्य सक्रिय होता है । या अक्रिय ? कृतयुग्म राशि रूप असुरकुमारों की उत्पत्ति, सलेश्य
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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