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________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह तीन गुप्तियाँ (१)मनोगुप्ति, (२) वचनगुप्ति (३) कायगुप्ति। इनका स्वरूप भी प्रथम भाग बोलनं०१२८ (ख) में लिखा जा चुका है। (उत्तराध्ययन अध्ययन २४ ) ( समवायांग ८ । ५७१-साधऔर सोने की प्राठगणों सेसमानता सोने में आठ गुण होते हैंविसघाइ रसायणमंगलत्यविणए पयाहिणावत्त । गरुए अडझकुट्टे अट्ठ सुवरणे गुणा होंति ॥ अर्थात्-(१) सोना विष के असर को दूर कर देता है । (२) रसायन अर्थात् वृद्धावस्था वगैरह को रोकता है। शरीर में शक्ति देता है । (३) मांगलिक होता है । (४) विनीत होता है, क्योंकि कड़े कंकण वगैरह में इच्छानुसार बदल जाता है। (५) अग्नि के ताप से प्रदक्षिणावृत्ति होता है। (६) भारी होता है। (७) जलाया नहीं जा सकता । (८) अकुत्स्य अर्थात् निन्दनीय नहीं होता, अथवा बुरी गन्ध वाला नहीं होता। इसी तरह साधु के भी आठ गुण हैंइय मोहविसं घायई सिवोवएसा रसायणं होंति । गुणो य मंगलस्थं कुणति विणीओ य जोग्गो ति॥ मग्गाणुसारिपयाहिण गंभीरो गस्यो तहा होइ। कोहग्गिणा अडज्झो अकुत्थो सह सीलभावेणं ।। ___ अर्थात्- साधु मोक्षमार्ग का उपदेश देकर मोह रूपी विष को दूर करता है या नष्ट कर देता है। मोक्ष के उपदेश द्वारा जरा और मरण को दूर कर देने के कारण रसायन है। अपने गुणों के माहात्म्य से भी वह रसायन है।पापों का नाश करने वाला अर्थात् अशुभ को दूर करने वाला होने से मंगल है। खभाव से ही वह विनीत होता है और योग्य भी होता है। साधु हमेशा भगवान् के बताए मार्ग पर चलता है इसलिए
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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