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________________ १० भी सेठिया जैन प्रन्थमाला प्रदक्षिणावर्ती होता है। गम्भीर होता है अर्थात् तुच्छ दिल वाला नहीं होता। इसीलिए गुरु अर्थात् गुणों के द्वारा भारी होता है। क्रोध रूपी अग्नि सेतप्त नहीं होता है । अकुत्स्य अर्थात् पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालक होने से किसी तरह निन्दनीय या दुर्गन्ध वाला नहीं होता। (पंचाशक १४ गाथा ३२-३४) ५७२-प्रभावक आठ जो लोग धर्म के प्रचार में सहायक होते हैं वे प्रभावक कहलाते हैं। प्रभावक आठ हैं(१) प्रावचनी-- बारह अंग, गणिपिटक आदि प्रवचन को जानने वाला अथवा जिस समय जो आगम प्रधान माने जाएं उन सब को समझने वाला। (२)धर्मकथी-आक्षेपणी, विक्षपणी, संवेगजननी, निर्वेदजननी, इस प्रकार चार तरह की कथाओं को, जो श्रोताओं के मन को प्रसन्न करता हुआ प्रभावशाली वचनों से कह सकता है। जो प्रभावशाली व्याख्यान दे सकता है। (३) वादी-वादी, प्रतिवादी, सभ्य और सभापति रूप चतुरङ्ग सभा में दूसरे मत का खण्डन करता हुआ जो अपने पक्ष का समर्थन कर सकता है। (४) नैमित्तिक- भूत, भविष्यत् और वर्तमान काल में होने वाले हानि लाभ को जानने वाला नैमित्तिक कहलाता है। (५) तपस्वी- उग्र तपस्या करने वाला। (६) विद्यावान्- प्रज्ञप्ति (विद्या विशेष)आदि विद्याओं वाला। (७) सिद्ध- अजन, पादलेप आदि सिद्धियों वाला। (८) कवि-गद्य, पद्य वगैरह प्रबन्धों की रचना करने वाला। (प्रवचन सारोद्धार द्वार १४८ गाथा ६३४)
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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