SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४४ श्री सेठिया जैन अन्यमाला दो संख्या को जघन्य संख्येयक कहते हैं। तीन से लेकर उत्कृष्ट से एक कम तक की संख्या को मध्यम संख्येयक कहते हैं। उत्कृष्ट संख्येयक का स्वरूप नीचे दिया जाता है- तीन पल्य अर्थात् कूए जम्बूद्वीप की परिधि जितने कल्पित किए जायँ । अर्थात् प्रत्येक पल्य की परिधि तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, १२८ धनुा और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक हो । एक लारव योजन लन्बाई तथा एक लाख योजन चौड़ाई हो । एक हजार योजन गहराई तथा जम्बूद्वीप की वेदिका जितनी ( आठ योजन ) ऊँचाई हो । पल्यों का नाम क्रमशः शलाका, प्रतिशलाका और महाशलाका हो। पहले शलाका पल्य को सरसों से भरा जाय। उसमें जितने दाने आएं उन सब को निकाल कर एक द्वीप तथा एक समुद्र में डाल दिया जाय । इस प्रकार जितने द्वीप समुद्रों में वे दाने पड़ें उतनी लम्बाई तथा चौड़ाई वाला एक अनवस्थित पल्य बनाया जाय । इसके बाद अनवस्थित पल्य को सरसों से भरे । अनवस्थित पल्य की सरसों निकाल कर एक दाना द्वीप तथा एक दाना समुद्र में डालता जाय । उन सब के खतम हो जाने पर सरसों का एक दाना शलाका पल्य में डाल दे। जितने द्वीप और समुद्रों में पहले अनवस्थित पल्य के दाने पड़े हैं उन सब को तथा प्रथम अनवस्थित पल्य को मिला कर जितना विस्तार हो उतने बड़े एक और सरसों से भरे अनवस्थित पल्य की कल्पना करे । उसके दाने भी निकाल कर एक द्वीप तथा एक समुद्र में डाले और शलाका पल्य में तीसरा दाना डाल दे। उतने द्वीप समुद्र तथा द्वितीय अनवस्थित पल्य जितने परिमाण वाले तीसरे अनवस्थित पल्य की कल्पना करे । इस प्रकार उत्तरोत्तर बड़े अनवस्थित पल्यों की कल्पना करता हुआ शलाका पल्य
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy