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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह १४५ (२) दृष्टिवाद श्रुत परिमाण संख्या। कालिक श्रुत परिमाण संख्या अनेक तरह की है- अक्षरसंख्या, संघातसंख्या, पदसंख्या, पादसंख्या, गाथासंख्या, श्लोकसंख्या, वेष्टक (विशेष प्रकार का छन्द) संख्या, निक्षेप, उपोद्घात और सूत्रस्पर्शक रूप तीन तरह की नियुक्ति संख्या, उपक्रमादि रूप अनुयोगद्वार संख्या, उदेश संख्या, अध्ययन संख्या, श्रुतस्कन्ध संख्या और अङ्ग संख्या । दृष्टिवाद श्रुत की परिमाण संख्या भी अनेक तरह की है। पर्याय संख्या से लेकर अनुयोगद्वार संख्या तक इसमें समझना "" चाहिए । इनके सिवाय प्राभृत संख्या, पाभृतिका संख्या, प्राभृतमाभृतिका संख्या और वस्तु संख्या।। (६) ज्ञान संख्या- जो जिस विषय को जानता है, वही ज्ञान संख्या है। जैसे- शब्दशास्त्र अर्थात् व्याकरण को शाब्दिक अर्थात् वैयाकरण जानता है । गणित को गणितज्ञ अर्थात् ज्योतिषी जानता है। निमित्त को निमित्तज्ञ । काल अर्थात् समय को कालज्ञानी तथा वैधक को वैद्य । (७) गणना संख्या- दो से लेकर गिनती को गणनासंख्या कहते हैं । 'एक' गिनती नहीं है। वह तो वस्तु का स्वरूप ही है। गणनासंख्या के तीन भेद हैं-- संख्येय, असंख्येय और अनन्त। संख्येय के तीन भेद हैं- जघन्य, उत्कृष्ट और न जघन्य न उत्कृष्ट अर्थात् मध्यम। __ असंख्येय के नौ भेद हैं । (क) जघन्य परीत असंख्येयक (ख) मध्यम परीत असंख्येयक (ग) उत्कृष्ट परीत असंख्येयक (घ) जघन्य युक्त असंख्येयक (ङ) मध्यम युक्त असंख्येयक (च) उत्कृष्ट युक्त असंख्येयक (छ) जघन्य असंख्येय असंख्येयक (ज)मध्यम असंख्येय असंख्येयक (झ) उत्कृष्ट असंख्येय असंख्येयक । अनन्त के आठ भेद हैं वे अगले बोल में लिखे जाएंगे।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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