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________________ १४२ भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला (३) द्रव्य संख्या-शंखरूप द्रव्य को द्रव्य संख्या कहते हैं। इस के ज्ञशरीर, भव्य शरीर और तद्व्यतिरिक्त वगैरह भेद हैं। (४) उपमान संख्या- किसी के साथ उपमा देकर किसी वस्तु का स्वरूप या परिमाण बताने को उपमान संख्या कहते हैं। यह चार तरह की है- (१) सद्भुत अर्थात् विद्यमान वस्तु से विद्यमान की उपमा देना । जैसे- तीर्थङ्करों की छाती वगैरह को किवाड़ वगैरह से उपमादी जाती है। (२) विद्यमान पदार्थ को अविद्यमान से उपमा दी जाती है, जैसे- पल्योपम, सागरोपम आदि काल परिमाण को कूए वगैरह से उपमा देना। यहाँ पल्योपयादि... सद्भुत(विद्यमान)पदार्थ हैं और कूश्रावगैरह असद्भूत(अविद्यमान)। (३) असत् पदार्थ से सद्भूत पदार्थ की उपमा देना। जैसे- वसन्त ऋतु के प्रारम्भ में नीचे गिरे हुए पुगने मूखे पत्ते नई कोंपलों से कहते हैं- 'भाई ! हम भी एक दिन तुम्हारे सरीखे ही कोमल, कान्ति वाले तथा चिकने थे । हमारी आज जो दशा है तुम्हारी भी एक दिन वही होगी, इस लिए अपनी सुन्दरता का घमण्ड मत करो।' यहाँ पत्तों का आपस में बातचीत करना असद्भुत अर्थात् अविद्यमान वस्तु हैं। उनके साथ भव्य जीवों की आपसी बातचीत की उपमा दी गई है। अर्थात् एक शास्त्रज्ञ प्राणी मरते समय नवयुवकों से कहता है 'एक दिन तुम्हारी यही दशा होगी इस लिए अपने शरीर, शक्ति आदि का मिथ्या गर्व मत करो।' (४) चौथी अविद्यमान वस्तु से अविद्यमान वस्तु की उपमा होती है। जैसे- गधे के सींग आकाश के फूलों सरीखे हैं। जैसे गधे के सींग नहीं होते वैसे ही आकाश में फूल भी नहीं होते। इसलिए यह असत् से असत् की उपमा है। (५) परिमाण संख्या-पर्याय आदि की गिनती बताना परिमाण संख्या है। इसके दो भेद हैं- (१) कालिक श्रुत परिमाणसंख्या
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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