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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह जब वह बाहर गया हुआ था, उससे बिना पूछे ही कम्बल को फाड़कर पैर पोंछने के कपड़े बना दिये / शिवभूति को यह जान कर मन ही मन बहुत क्रोध आया। एक दिन की बात है कि गुरु जिनकल्पियों का वर्णन कर रहे थे। उन्होंने कहा-जिनकल्पी दो तरह के होते हैं। पाणिपात्र ( हाथ ही जिन के पात्र हैं अर्थात् पास में कुछ न रखने वाले)और प्रतिग्रह (पात्र वगैरह ) रखने वाले / इनमें भी प्रत्येक के दो भेद हैं—प्रावरण (शरीर ढकने के लिए वस्त्र रखने वाल) और अप्रावरण (बिल्कुल वस्त्र न रखने वाले)। दो, तीन, चार, पाँच, नौ, दस, ग्यारह और बारह, इस तरह जिनकल्पी की उपधियों के आठ भेद हैं। (1) कुछ जिनकल्पियों के पास रजोहरण और मुखवत्रिका नाम की दो ही उपधियाँ होती हैं। ( 2 ) कुछ के पास तीन, दो पहले की और एक कल्प अर्थात् कम्बलादि उपकरण / (3) दो कल्पों के साथ चार उपधियाँ हो जाती हैं। (4) तीन कल्पों के साथ पाँच / (5) मुखवस्त्रिका रजोहरण और सात तरह का पात्रनिर्योग / इस प्रकार नव तरह की उपधि हो जाती है। पात्रनिर्योग इस प्रकार है- पात्र, पात्र बांधने का कपड़ा, पात्र रखने का कपड़ा, पात्र पोंछने का कपड़ा, पटल (भिक्षा के समय पात्र पर ढका जाने वाला वस्त्र),रजत्राण (पात्र लपेटने का कपड़ा)औरगुच्छक (पात्र साफ करने का वस्त्रखंड)। (6) इन्हीं के साथ एक कल्प मिलाने से दस तरह की उपधि हो जाती है। (7) दो मिलाने से ग्यारह तरह की / (८)तीन मिलाने से बारह तरह की।
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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