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________________ भी सेठिया जैन प्रन्यमाला होने से वह नगर में विलासी बनकर घूमता फिरता। आधी रात बीत जाने पर घर लौटता। एक दिन उसकी स्त्री ने अपनी सास से कहा- आपके पुत्र ने मुझे तो दुखी कर दिया। वे कभी रात को समय पर घर नहीं आते / नींद और भूख के मारे तंग हो जाती हूँ। ___ उसकी सास ने कहा- बेटी ! अगर यह बात है तो तुम आज सो जाओ / मैं जागती रहूँगी। बहू ने वैसा ही किया ।वृद्धाको जागते हुए जब आधी रात बीत गई, शिवभूति ने आकर आवाज दी, 'किवाड़ खोलो'। मां ने क्रोध में आकर कहादुष्ट ! इस समय जहाँ किवाड़ खुले रहते हैं वहीं चले जाओ। तेरे पीछे लगकर अपनी जान कौन दे? . क्रोध और अहंकार से भरा हुआ वह वहाँ से चल दिया / घूमते हुए खुले द्वार वाले स्थानक को देखा। वहाँ साधु महाराज धर्मध्यान कर रहे थे। उनके पास जाकर वन्दना करके उसने दीक्षा मांगी। राजवल्लभ और माता तथा पत्नी के द्वारा उद्वेजित जानकर उन्होंने दीक्षा न दी। .. ___ स्वयमेव दीक्षा लेकर अपने आप लोच करके वह साधु बन गया / दूसरे साधुओं ने उसे वेश दे दिया और सब के सब दूसरी जगह विहार कर गए। कुछ दिनों बाद फिर वहाँ आए। राजा ने शिवभूति को एक बहुमूल्य कम्बल दिया / आचार्य ने शिवभूति से कहा- इस बहुमूल्य कम्बल से मार्ग में बहुत सी बाधाएं खड़ी होने की सम्भावना है। इसलिए तुम्हें यह नहीं लेना चाहिये / शिवभूति ने कम्बल छिपाकर रख लिया। गोचरी वगैरह से लौट कर उसे सम्भाल लेता और उसे किसी काम में नहीं लाता। गुरु ने उसके मूर्खाभाव को दूर करने के लिये एक दिन
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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