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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला कालद्रव्य का स्वक्षेत्र समय है। पुद्गल का स्वक्षेत्र परमाणु है। जीव द्रव्य का स्वक्षेत्र एक जीव की अपेक्षा असंख्यात प्रदेश हैं । छहों द्रव्यों का स्वकाल अगुरुलघु पर्याय है, क्योंकि अगुरुलधु को ही काल कहते हैं । इस अगुरुलघु में ही उत्पाद और व्यय होता है । छहों द्रव्यों में अपना अपना मुख्य गुण ही स्वभाव है। जैसे धर्मास्तिकाय का मुख्य गुण गति सहायता है, वही उसका स्वभाव कहा जाता है । इसी तरह अन्य द्रव्यों के पूर्वोक्त मुख्य मुख्य गुणों में जिससे जो द्रव्य जाना जाता है,उसे उस द्रव्य का स्वभाव कहते हैं । इस प्रकार छहों द्रव्य अपने द्रव्य, क्षेत्र ,काल और भाव की अपेक्षा सत् हैं और पर द्रव्य आदि की अपेक्षा असत् हैं। वक्तव्य अवक्तव्य वचन से जो कहा जा सके उसे वक्तव्य और जो न कहा जा सके उसे अवक्तव्य कहते हैं। छहों द्रव्यों में अनन्त गुण और अनन्त पर्याय वक्तव्य हैं। अनन्तगुण तथा पर्याय अवक्तव्य हैं। केवली भगवान् सर्व द्रव्य और पर्यायों को देखते हैं । परन्तु उनका अनन्तवां भाग ही कह सकते हैं। उनके ज्ञान का अनन्तवां भाग श्रीगणधर महाराज आगम रूप से गूंथते हैं । उन आगमों का भी असंख्यातवां भाग इस समय विद्यमान है । इस प्रकार वक्तव्य और अवक्तव्य विषय का स्वरूप दिखलाया गया । इसको स्पष्ट करने के लिए लौकिक दृष्टान्त दिखाया जाता है। जैसे किसी जगह अच्छे २ गानेवाले पुरुष गान कर रहे हों उस गाने में कोई उसका समझने वाला भी बैठा हो,
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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