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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह रूप से समान हैं। अभव्य और मोक्ष शंका-सर्व जीव सिद्ध के समान हैं तो अभव्य मोक्ष क्यों नहीं जा सकता ? समाधान-अभव्य के कर्म चिकने हैं। इस कारण उसके कर्मों का मूल से नाश नहीं होने पाता। यह उनका स्वभाव है। स्वभाव बदल नहीं सकता । सब जीवों के आठ रुचक प्रदेश मुख्य होते हैं। इन आठ प्रदेशों में कभी कर्मों का संयोग नहीं होता । वे आठ प्रदेश चाहे भव्य के हों चाहे अभव्य के, सब के अत्यन्त निर्मल रहते हैं । इसलिए निश्चय नय के मत से सर्व जीव सिद्ध के समान हैं । इसी तरह पुद्गल में भी पुद्गलत्वरूप सामान्य धर्म सब पुद्गलों में समान होने से पुद्गल द्रव्य एक है। सद् असद् पूर्वोक्त छहों द्रव्य स्वद्रव्य,स्वक्षेत्र,स्वकाल और स्वभाव से सत् अर्थात् विद्यमान हैं। परद्रव्य,परक्षेत्र,परकाल और परभाव की अपेक्षा असत्-अविद्यमान हैं । इन छहों के स्वद्रव्यादि का स्वरूप इस प्रकार है-धमास्तिकाय का स्वद्रव्य अपने गुण और पर्यायों का आश्रय होना है अर्थात्,धर्मास्तिकाय के गुण और पर्याय जिसमें रहते हों, वह धर्मास्तिकाय का स्वद्रव्य है। इसी तरह अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय और काल का स्वद्रव्य भी समझ लेना चाहिए। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय का स्वक्षेत्र अपने अपने असंख्यात प्रदेश हैं।आकाश का स्वक्षेत्र अनन्तप्रदेश हैं।
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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