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________________ 390 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला जायँगे और मोक्ष भी मिल जायगा। गोष्ठामाहिल को कर्मों के विषय में शंका होने के कुछ दिनों बाद प्रत्याख्यान के विषय में भी शंका उत्पन्न हो गई। सभी प्रत्याख्यान बिना अवधि के करने चाहिये / जिन प्रत्याख्यानों में यावज्जीवन या और किसी तरह समय की अवधि रहती है उनमें आशंसा दोष लगता है, क्योंकि यावत् जीवन त्याग करने वाले के दिल में यही भावना बनी रहती है कि मैं स्वर्ग में जाकर सभी भोग भोगूंगा। इस तरह के परिणाम से प्रत्याख्यान दूषित हो जाता है, क्योंकि शास्त्रों में लिखा है दुष्ट परिणामों की अशुद्धि के कारण प्रत्याख्यान भी अशुद्ध हो जाता है। राग द्वेष रूप परिणाम से जो त्याग दूषित नहीं किया जाता उसे भावविशुद्ध कहते हैं। गोष्ठामाहिल ने जो बात पूर्वपक्ष के समर्थन में कही, वह विन्ध्य ने आचार्य दुर्बलिका पुष्पमित्र से निवेदन की। गुरु ने उस की सब युक्तियों का खंडन कर दिया। विन्ध्य ने गुरु की आज्ञा से सारी बात गोष्ठामाहिल के सामने रक्खी। मिथ्या. भिमान के कारण गोष्ठामाहिल ने उसकी बात न मानीतो गुरु ने स्वयं बातचीत करके समझाने का निश्चय किया। . उन्होनें कर्म विषयक विवाद को पहले निपटाने के लिए गोष्ठामाहिल से प्रश्न किया।यदि कर्मजीव को कंचुकी की तरह छूते हैं तो क्या वे जीव के प्रत्येक देश को लपेटे रहते हैं या सारे जीव को अर्थात् शरीर के चारों तरफ चिपके रहते हैं? ___ यदि पहला पक्ष मान लिया जाय तो कर्मों को जीव में सर्वव्यापक मानना पड़ेगा। हरएक प्रदेश के चारों तरफ कर्माजाने से कोई भी मध्य का प्रदेश नहीं बचेगा जहाँ कर्म न हों / आकाश की तरह कर्म जीव के हर एक प्रदेश में व्याप्त होने से सर्वगत हो
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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