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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह आत्मप्रदेश क्यों कहा जाय / नोजीव का अर्थ है जीवप्रदेश क्योंकि यह जीव और अजीव दोनों से ही विलक्षण है। __समभिरूढनय के मत से भी जीवप्रदेश को नोजीव माना गया है। अनुयोगद्वार में प्रमाणद्वार के अन्तर्गत नय का विचार करते हुए इस बात को स्पष्ट कहा है। समभिरूढनय शब्दनय को कहता है- यदि कर्मधारय से कहते हो तो इस तरह कहो' जीव रूप जो प्रदेश उसके खप्रदेश नोजीव है।' ___ इसमें प्रदेश रूप जीव के एक देश को नोजीव कहा है। जिस तरह घट का एक देश नोघट कहा जाता है। इसलिये नोजीवनाम की तीसरी राशि है / वह भी जीवाजीवादि तत्त्वों की तरह युक्ति और आगम से सिद्ध है। षडुलूक के इस प्रकार कहने पर प्राचार्य ने उत्तर दिया यदि सूत्र को प्रमाण माना जाय तोजीव और अजीव दो ही राशियाँ हैं / स्थानाङ्गसूत्र में दो राशियाँ कही गई हैं-जीव और अजीव / अनुयोगद्वार में भी कहा है जीवद्रव्य और अजीवद्रव्य / - उत्तराध्ययन में कहा गया है कि जीव और अजीव इन्हीं से लोक व्याप्त है। इसी प्रकार दूसरे सूत्रों में भी ऐसे प्रवचन हैं। तीसरी नोजीव राशि नहीं कही गई। उस की सत्ता बताना शास्त्र का अनादर करना है। धर्मास्तिकाय आदि का देश भी उन से भिन्न नहीं है / केवल विवक्षा के लिये उस में भिन्नत्व की कल्पना की गई है। इसी तरह पूँछ भी छिपकली से अभिन्न ही है, क्योंकि वह उसी के साथ लगी हुई है। इसलिये वह जीव ही है। नोजीव नहीं / छुरी आदि से जब छिपकली की पूंछ कट जाती है तो उसके अलग हो जाने पर भी बीच में जीव प्रदेशों का सम्बन्ध बना रहता है / यही बात भगवती सूत्र में बताई है। हे भगवन् ! कछुआ, कछुए के अवयव, मनुष्य, मनुष्य के
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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