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________________ श्रीसेठिया जैन अन्धमाला अवयव, गोह, गोह के अवयव, गाय, गाय के अवयव, महिष, महिष के अवयव- इनके दो तीन या असंख्यात टुकड़े हो जाने पर क्या बीच में भी जीव प्रदेश रहते हैं ? हाँ, रहते हैं। __ हे भगवन् ! क्या कोई पुरुष उन जीव प्रदेशों को अपने हाथ से छूकर किसी तरह पीड़ा पहुँचा सकता है ? नहीं, यह बात सम्भव नहीं है। वहाँ शस्त्र की गति नहीं होती। इन वाक्यों से जीव और उनके कटे हुए भाग के बीच में जीव प्रदेशों का होना सिद्ध है। अत्यन्त सूक्ष्म और अमूर्त होने से उन्हें कोई भी नहीं देख सकता। जिस प्रकार दीप का प्रकाश आकाश में दिखाई नहीं पड़ता, वही घटपटादि पदार्थों पर मालूम पड़ने लगता है। उसी तरह जीव का भान श्वासोच्छ्वास वगैरह क्रियाओं के कारण शरीर में ही होता है / अन्तराल में मालूम नहीं होता। देह के न होने पर जीव के लक्षण भी नहीं दिखाई पड़ते। देहरहित मुक्तात्मा अथवा कटी पूँछ वाले अन्तरालवर्ती जीव को केवलज्ञान आदि अतिशय से रहित पाणी नहीं जान सकता। इसी तरह अति सूक्ष्म देह वाले निगोदादि जीव या कार्मणशरीर वाले प्राणी को भी ग्रहण नहीं कर सकता। अन्तरालवर्ती जीवप्रदेशों को शस्त्रादि से कोई किसी तरह की बाधा नहीं पहुँचा सकता। शंका-- कट जाने से छिपकली का पूंछ वाला हिस्सा अलग हो जाता है तो उसे नोजीव क्यों नहीं कहा जाता ? जिस तरह गली में पड़ा हुआ घड़े का टुकड़ा नोघट कहलाता है। उत्तर- यह कहना ठीक नहीं है। जीव का खंड खंड करके नाश नहीं होता, क्योंकि वह आकाश की तरह अमूर्त है, अकृतक है / घटादि की तरह उस में विकार नहीं देखे जाते।शस्त्रादि कारणों से भी उसका नाश नहीं हो सकता ।अगर जीव का
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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