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________________ 374 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला पर बिडाल, मृगी पर व्याघ्र, शूकगें पर सिंह, कौवों पर उल्लू और पोताकियों पर बाजों को छोड़ा गया। अन्त में परिव्राजक ने गर्दभी छोड़ी। रोहगुप्त ने सिर पर रजोहरण घुमाकर गर्दभी को पीटा।वह उल्टी परित्राजकपर टूट पड़ी। उस पर मूत्रपुरीपोत्सर्ग करके चली गई। सभापति, सभ्य और सारी जनता द्वारा निन्दित होता हुआ परिव्राजक नगर के बाहर निकाल दिया गया। पोदृशाल परिव्राजक को जीत कर रोहगुप्त (जिस का दूसरा नाम षडुलूक था)गुरु के पास आया और सारा हाल सुनाया। आचार्य ने कहा यह तुमने अच्छा किया कि उसे जीत लिया। किन्तु उठते समय यह क्यों नहीं कहा कि यह हमारा सिद्धान्त नहीं है। जैन शास्त्रों में जीव और अजीव दो ही राशियाँ हैं। तीसरी राशि की कल्पना उसे हराने के लिये की गई है। अब भी जाकर सभा में तुम यह बात कहो कि परिव्राजक का मिथ्या अभिमान चूर करने के लिये ही ऐसा किया गया है। वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है / गुरु के बहुत समझाने पर भी रोहगुप्त कहने लगा यह अपसिद्धान्त नहीं है। नोजीव नाम की तीसरी राशि मानने में कोई दोष नहीं है। छिपकली की पूँछ नोजीव है। __ नोजीव में नो शब्द का अर्थ सर्वनिषेध नहीं है। नोजीव का अर्थ है जीव का एक देश न कि जीव का अभाव / छिपकली की कटी हुई पूँछ को जीव नहीं कहा जा सकता / जीव शरीर.का एक देश होने के कारण वह उससे विलक्षण है। अजीव भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसमें हलन चलन होती है / इसलिए इसे नोजीव ही मानना ठीक है। शास्त्र में कभी छिन्न न होने वाले धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय के भी देश और प्रदेश बताये हैं। फिर शरीर से अलग हो जाने वाली छिपकली की पूँछ को
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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