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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ३४३ और विहार कर दिया। वहाँ जाकर वह अपने पाँच सौ साधुओं के साथ तैन्दुक उद्यान के कोष्ठक नामक चैत्य में ठहर गया। ___ कुछ दिनों बाद रूखा, सूखा अपथ्य आहार करने से जमाली ज्वराक्रान्त हो गया । थोड़ी देर बैठने की भी शक्ति न रही। उसने अपने शिष्यों को विस्तर बिछाने की आज्ञा दी । साध बिछाने लगे। थोड़ी देर में जमाली ने पूछा- मेरे लिए विस्तर बिछा दिया या बिछाया जा रहा है ? श्रमणों ने जवाब दिया आप के लिए विस्तर बिछा नहीं है, बिछाया जा रहा है । यह सुनकर जमाली अनगार के मन में संकल्प खड़ा हुआश्रमण भगवान महावीर जो यह कहते हैं और प्ररूपणा करते है कि चलता हुआ चलित कहलाता है, उदीर्यमाण उदीर्ण कहलाता है, यावत् निर्जीयमाण निर्जीर्ण कहा जाता है, वह मिथ्या है । क्योंकि यह प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है कि जो शय्या संस्तारक किया जा रहा है वह 'किया हुआ' नहीं है। जो बिछाया जा रहा है वह 'बिछा हुआ' नहीं है। जिस प्रकार किया जाता हुआ शय्यासंस्तारक 'किया हुआ' नहीं है बिछाया जाता हुआ 'बिछा हुआ' नहीं है। इसी प्रकार जब तक चल रहा है तब तक 'चला हुआ' नहीं है किन्तु अचलित है, यावत् जिसकी निर्जरा होरही है वह निर्जीर्ण नहीं है किन्तु अनिर्जीर्ण है। ___ जमाली ने इस बात पर विचार किया। फिर अपने साधुओं को बुला कर कहा- हे देवानुप्रियो ! श्रमण भगवान् महावीर जो यह कहते हैं, प्ररूपणा करते हैं कि चल्यमान चलित कहा जाता है, इत्यादि वह ठीक नहीं है यावत् वह अनिर्जीर्ण है। जिस समय जमाली अनगार साधुओं को यह बात कह रहे थे, प्ररूपणा कर रहे थे, उस समय बहुत से अनगार इस बात को श्रद्धापूर्वक मान रहे थे, उसकी प्रतीति तथा रुचि कर रहे
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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