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________________ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला थे, और कुछ इसे नहीं मान रहे थे, उसकी प्रतीति और रुचि . नहीं कर रहे थे। जो साधु जमाली की बात को मान गए वे उसी के साथ विहार करने लगे। दूसरे उसका साथ छोड़ कर विहार करते हुए भगवान् की शरण में आगए । कुछ दिनों बाद जमाली अनगार स्वस्थ होगया । श्रावस्ती से विहार करके ग्रामानुग्राम विचरता हुआ चम्पानगरी के पूर्णभद्र चैत्य में विराजमान भगवान् महावीर के पास आया। वहाँ आकर उस ने कहा- आप के बहुत से शिष्य छद्मस्थ होकर अलग विहार कर रहे हैं किन्तु मुझे तो ज्ञान उत्पन्न हो गया है। अब मैं केवलज्ञान और केवलदर्शन युक्त होने के कारण , जिन और केवल होकर विचर रहा हूँ । ३४४ यह सुन कर भगवान् गौतमस्वामी ने जमाली से कहाहे जमाली ! केवली का ज्ञान या दर्शन पर्वत, स्तम्भ या स्तूप किसी से नहीं होता, किसी से निवारित नहीं होता। अगर तुम ज्ञान और दर्शन के धारक अर्हन्, जिन या केवली बनकर विचर रहे हो तो इन दो प्रश्नों का उत्तर दो। (१) हे जमाली ! लोक शाश्वत है या अशाश्वत १ ( २ ) जीव शाश्वत है या अशाश्वत ? गौतमस्वामी के द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर जमाली सन्देह में पड़ गया | उसके परिणाम कलुषित हो गए। वह भगवान् गौतम के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सका। यह देखकर श्रमण भगवान् महावीर ने कहा- हे जमाली ! मेरे बहुत से श्रमण निर्ग्रन्थ शिष्य वद्मस्थ हैं। वे इन प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं। लेकिन तुम्हारी तरह वे अपने को सर्वज्ञ या जिन नहीं कहते । हे जमाली ! लोक शाश्वत है, क्योंकि 'लोक किसी समय नहीं था' यह बात नहीं है । 'किसी समय नहीं है' यह बात भी
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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