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________________ '३४२ भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला ५६१- निलव सात __नि पूर्वक नु धातु का अर्थ है अपलाप करना। जो व्यक्ति किसी महापुरुष के सिद्धान्त को मानता हुआ भी किसी विशेष बात में विरोध करता है और फिर स्वयं एक अलग मत का प्रवर्तक बन बैठता है उसे निह्नव कहते हैं । भगवान् महावीर के शासन में सात निह्नव हुए। उनके नाम और परिचय नीचे लिखे अनुसार हैं(१) बहुरत- जब तक क्रिया पूरी न हो तब तक उसे निष्पन्न या कृत नहीं कहा जा सकता । यदि उसी समय उसे निष्पन्न कह दिया जाय तो शेष क्रिया व्यर्थ हो जाय। इसलिए क्रिया की निष्पत्ति अन्तिम समय में होती है । प्रत्येक क्रिया के लिए कई क्षणों की आवश्यकता होती है । कोई क्रिया एक क्षण में सम्भव नहीं है। क्रिया के लिए बहुत समयों को आवश्यक मानने वाला होने से इस मत का नाम बहुरत है । इस मत का प्रवर्तक जमाली था। ___ भगवान् महावीर को सर्वज्ञ हुए सोलह वर्ष हो गए । कुण्डपुर नगर में जमाली नाम का क्षत्रिय पुत्र रहता था । वह भगवान् का भाणेज था और जमाई भी। उसने पाँच सौ राजकुमारों के साथ भगवान के पास दीक्षा ली। उसकी स्त्री ने भी एक हजार क्षत्राणियों के साथ प्रवन्या ले ली। वह भगवान् महावीर की बेटी थी, नाम था सुदर्शना, ज्येष्ठा या अनवद्या। जमाली ने ग्यारह अङ्गों का अध्ययन किया। __ एक दिन उसने अपने पाँच सौसाथियों के साथ अकेले विचरने की भगवान् से अनुमति मांगी । भगवान् ने कुछ उत्तर न दिया । दूसरी और तीसरी बार पूछने पर भी भगवान् मौन रहे । जमाली ने अनुमति के बिना ही श्रावस्ती की
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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