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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह स्वरूप इस प्रकार है। वे उन्हें तपा हुआ सीसा पिलाते हैं। तपी हुई लोमय स्त्री से मालिङ्गन करवाते हैं । कूट शाल्मली वृक्ष के नीचे बैठा देते हैं जिससे तलवार सरीखे पत्रों से उस के अंग छिद जावें । लोहे के हथौड़े से कूटते हैं। वसोले मादि से छीलते हैं । घाव पर नमक या तपा हुआ तेल डाल देते हैं। भाले में पिरो देते हैं। भाड़ में भूनते हैं। कोल्हू में पेलते हैं। करौती से चीरते हैं। विक्रिया के द्वारा बनाए हुए कौए, सिंह आदि द्वारा तंग करते हैं। तपी हुई बालू में फेंक देते हैं। असिपत्र वन में बैठा देते हैं जहाँ तलवार सरीखे पत्ते गिर २ कर उनके अगों को काट डालते हैं। वैतरणी नदी में डुबो देते हैं । और भी अनेक तरह की यातनाएँ देते हैं। कुम्भीपाक में पकाए जाते हुए नारक पाँच सौ योजन तक ऊँचे उछलते हैं। फिर वहीं पाकर गिरते हैं। इनका वर्णन जीवाभिगम, सूयगडांग, पनवणा, प्रश्नव्याकरण आदि शास्त्रों में दिया गया है। स्थिति- रत्नप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति एक सामरोपम है।शर्कराप्रभा में तीन सागरोपग । वालुकाप्रभा में सात । पडूप्रभा में दस। धूमप्रभा में सतरह । तमःप्रभा में बाईस । तमस्तमःममा में तेतीस! जघन्य स्थिति पहली नारकी में दस हजार वर्ष । दूसरी में एक सागरोपम । तीसरी में तीन । चौथी में सात । पाँचवीं में दस । छठी में सतरह । सातवीं में बाईस। अवगाहना-अवगाहना दो तरह की है-भवधारणीया और उत्तरतिक्रिया । जन्म से लेकर मृत्यु तक शरीर का जो परिमाण होता है अर्थात् जो स्वाभाविकपरिमाण है,उसे भवधारणीया अवगाहना कहते हैं। स्वाभाविक शरीर धारण करने के बाद किसी कार्य विशेष से जो शरीर बनाया जाता है उसे उत्तरबिक्रिया कहते हैं। पहली पृथ्वी में भवधारणीया उत्कृष्ट अवगाहना सात धनुष
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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