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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला भूख, प्यास, खुजली, परवशता, ज्वर, दाह, भय, शोक आदि दूसरी वेदनाएं भी नारक जीवों के होती हैं । हमेशा भयङ्कर तुधामि से जलते रहते हैं। सारे संसार के पदार्थ खा लेने पर भी उन्हें तृप्ति न हो । हमेशा प्यास से कण्ठ, ओठ, तालु, जीभ आदि सूखे रहते हैं। सारे समुद्रों का पानी पी लेने पर भी उनकी प्यास न बुझे । खुजली छुरी से खुजलाने पर भीन मिटे । दूसरी वेदनाएं भी यहाँसे अनन्तगुणी होती हैं। नारकजीवों का अवधिज्ञान या विभङ्गज्ञान भी उनके दुःख का ही कारण होता है । वे दूर से ही ऊपर नीचे तथा तिरछी दिशा से आते हुए दुःखों के कारणों को देख लेते हैं और भय से काँपने लगते हैं। नारकी जीव दो तरह के होते हैं- सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि । सम्यग्दृष्टि जीव दूसरे द्वारा की गई वेदना का अनुभव करते हुए यह सोचते हैं कि हमने पिछले जन्म में प्राणियों की हिंसा वगैरह घोर पाप किये थे, इसी लिए इस जन्म में दुःख भोग रहे हैं। यह समझ कर वे दसरे जीव द्वारा दिये गए कष्ट को तो सम्यक्पकार सहते हैं किन्तु अपनी तरफ से दूसरे को कष्ट पहुँचाने का प्रयत्न नहीं करते, क्योंकि वे नए कर्मबन्ध से बचना चाहते हैं । मिथ्यादृष्टि जीव क्रोधादि कषायों से अभिभूत हो कर अपने बाँधे हुए कर्म रूपी वास्तविक शत्रु को न समझ कर दूसरे नारकी जीवों को मारने दौड़ते हैं। इस तरह वे सब आपस में लड़ते रहते हैं। जिस तरह नए कुत्ते को देख कर गांव के कुत्ते भोंकने लगते हैं, इसी तरह नारकी जीव एक दूसरे को देखते ही क्रोध में भर जाते हैं। अपने प्रतिद्वन्दी को चीरने फाड़ने मारने आदि के लिए तरह तरह की विक्रियाएं करते हैं। इस तरह एक दूसरे द्वारा पीड़ित होते हुए करुण रुदन करते हैं । परमाधार्मिक देवों द्वारा जो वेदना दी जाती है उसका
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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