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________________ भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह १६७ या आध्यात्मिक सभी प्रकार की सिद्धियों के लिए आत्मविश्वास आवश्यक है । मोक्ष के लिए भी यह जरूरी है कि मोक्ष के उपाय में दृढ विश्वास हो । इसी को सम्यग्दर्शन कहते हैं। जो व्यक्ति डाँवाडोल रहता है वह कभी सफलता या कल्याण प्राप्त नहीं कर सकता । इसी लिए सम्यग्दर्शन के पाँच दोष बताए गए हैं । (१) शङ्का- मोक्ष मार्ग में सन्देह करना। (२) कांक्षामोक्ष के निश्चित मार्ग को छोड़ कर इधर उधर भटकना या परमसुख रूप मोक्ष प्राप्ति के एकमात्र ध्येय से विचलित होकर दूसरी बातों की इच्छा करने लग जाना । (३) वितिगिच्छाधर्माराधन के फल में सन्देह करना । (४) परपाषण्डप्रशंसाधर्महीन किसी ढोंगी या ऐन्द्रनालिक की लौकिक ऋद्धि को देख कर उसकी प्रशंसा करने लग जाना तथा उसके मागे की ओर झुक जाना । (५) परपाषण्डसंस्तव- ऐसे ढोंगी का परिचय करना तथा उसके पास अधिक बैठना उठना। सम्यग्दर्शन या सम्यक्त्व का अर्थ अन्धविश्वास नहीं है । अन्धविश्वास का अर्थ है हित अहित, सत्य असत्य या सदोष निर्दोष का ख्याल किए बिना किसी बात को पकड़ कर बैठ जाना । समझाने पर भी न समझना । सत्य को अपनाने के बदले अपने मत को ही पूर्ण सत्य मानना । सम्यक्त्व का अर्थ है, जो वस्तु सत्य हो उस पर दृढ़ विश्वास करना। वास्तव में देखा जाय तो एकान्त तर्क का अवलम्बन करने से मनुष्य किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सकता। प्रत्येक बात में उसे सन्देह हो सकता है कि अमुक बात ठीक है या गलत ।युक्ति या तर्क द्वारा प्रमाणित होने पर भी वह सन्देह कर सकता है कि अमुक तर्क ठीक है या गलत । ऐसे सन्देहशील व्यक्ति
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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