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________________ १६८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थ माला को कहीं शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती। इसी लिए मुमुक्षु के लिए केवल तर्क निषिद्ध है । वेदान्त दर्शन में भी कहा है'तर्काप्रतिष्ठानात्' अर्थात् तर्क अप्रतिष्ठित हैं। उनसे किसी निर्णय पर नहीं पहुँचा जा सकता । जिस वस्तु को आज एक तार्किक युक्ति से सिद्ध करता है, दूसरे दिन वही बात दूसरे तार्किक द्वारा गलत साबित कर दी जाती है। शङ्कराचार्य ने लिखा है कि संसार में जितने तार्किक हुए हैं, जो हैं और जो होंगे वे सब इकट्ठे होकर अगर एक फैसला करलें कि अमुक बात ठीक है तभी यह कहा जा सकता है कि तर्क निर्णय पर पहुँचता है। जैसे तीन काल के तार्किकों का एक जगह बैठ कर विचार करना असम्भव है उसी प्रकार तर्क के द्वारा निर्णय होना भी असम्भव है । इसी लिए प्रायः सभी शास्त्रों ने तर्क की अपेक्षा आगम या श्रुति को प्रबल माना है । जो तर्क आगम या श्रुति से विरुद्ध चलता हो उसे हेय कहा है। वास्तविक निर्णय तो सर्वज्ञ होने पर ही हो सकता है। उससे पहले सर्वज्ञ और वीतराग के वचनों पर विश्वास करना चाहिए। एक बात पर विश्वास करके आगे बढता चला जाय दूसरी बातों का पता अपने आप लग जायगा । । सम्यग्ज्ञान नय और प्रमाण से होने वाले जीवादि तत्त्वों के यथार्थ ज्ञान को सम्यग्ज्ञान कहते हैं। ज्ञान जीव मात्र में पाया जाता है । ऐसा कोई समय नहीं आता जब जीव ज्ञान रहित अर्थात् जड़ हो जाय । वह ज्ञान चाहे मिथ्या ज्ञान हो या सम्यक् । शास्त्रों में अज्ञानी शब्द का व्यवहार मिथ्याज्ञानी के लिए होता
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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