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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह १६५ गाँव है वहाँ वैशाली नाम की विशाल नगरी थी।चीनी यात्री यॉन चॉना के अनुसार इसकी परिधि २० मील थी। उसके पास कुण्डलपुर नाम का. नगर था। कुण्डलपुर के समीप ही क्षत्रियकुण्ड नामक ग्राम में लिच्छवि वंश के सिद्धार्थ नामक राजा रहते थे। उनकी रानी का नाम था त्रिशला देवी। चौथा आरा समाप्त होने से ७५ वर्ष और विक्रम सम्वत् से ५४२ वर्ष पहले चैत्र शुक्ला त्रयोदशी मङ्गलवार को, उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र में सिद्धार्थ के घर अन्तिम तीर्थङ्कर श्रीमहावीर प्रभु का जन्म हुआ । उन्होंने ३० वर्ष गृहस्थावास में रहकर मिगसर वदी दशमी को दीक्षा ली । साढे बारह वर्ष तक घोर तपस्या की। भयङ्कर कष्टों का सामना किया। साढे बारह वर्ष में केवल ३४६ दिन आहार किया। शेष दिन निराहार ही रहे। ___ उग्र तपस्या के द्वारा कर्म मल खपा देने पर उन्हें केवलज्ञान हो गया। उन्होंने संसार के सत्य स्वरूप को जान लिया। आत्मकल्याण के बाद जगत्कल्याण के लिए उपदेश देना शुरू किया । संसार सागर में भटकते हुए जीवों को सुखप्राप्ति का सच्चा मार्ग बताना प्रारम्भ किया । उन्होंने कहाः___ सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः। अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र ये तीनों मिल कर मोक्ष का मार्ग है। उत्तराध्ययन सूत्र के २८ वें अध्ययन में आया है:नादंसणिस्स नाणं नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा। अगुणिस्सनस्थि मोक्खोनस्थि अमोक्खस्स निव्वाणं॥ __ अर्थात् दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता, विना ज्ञान के चारित्र नहीं होता । चारित्र के दिना मोक्ष और मोक्ष के बिना परम
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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