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________________ १६४ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला छोड़कर अनन्त सुखमय मोक्ष में पदार्पण कर गए । भगवान् ऋषभदेव के बाद तेईस तीर्थङ्कर हुए। इनमें इक्कीस वर्तमान इतिहास से पहले हो चुके । बाईसवें नेमिनाथ महाभारत के समय हुए । वे यदुवंशी क्षत्रिय तथा कृष्ण वासुदेव की भूपा के पुत्र थे। उनका समय ई०पू० ८४५०० वर्ष माना जाता है। ईसा के पहले आठवीं सदी में भगवान् पार्श्वनाथ हुए । वे तेईसवें तीर्थङ्कर थे। भगवान् पार्श्वनाथ के समय चातुर्याम धर्म था अर्थात् अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह ये चार ही महाव्रत थे।ब्रह्मचर्य नामक चतुर्थ व्रत का अन्तर्भाव अपरिग्रह में कर लिया जाता था। क्योंकि बिना समत्व या परिग्रह के अब्रह्मसेवन नहीं होता। उस समय साधु रंगीन वस्त्र पहिनते थे।आवश्यकता पड़ने पर प्रतिक्रमण करते थे। द्वितीय तीर्थङ्कर भगवान् अजितनाथ से लेकर भगवान् पार्श्वनाथ तक बीच के बाईस तीर्थङ्करों में इसी प्रकार का चातुर्याम धर्म कहा गया है। कहा जाता है, प्रथम तीर्थङ्कर के समय जनता सरल होने के कारण वस्तुस्वरूप को कठिनता से नहीं समझती है और अन्तिम तीर्थङ्कर के समय कुटिल होने के कारण धार्मिक नियमों में गल्तियाँ निकालती रहती है। इसलिए दो तीर्थङ्करों के समय पश्चयाम धर्म, नित्यप्रतिक्रमण तथा बहुत से दूसरे कड़े नियम होते हैं। बीच के बाईस तीर्थंकरों के समय जनता सरल भी होती है और चतुर भी। वह धर्म के रहस्य को ठीक ठीक समझती है और उसका हृदय से पालन करती है। ___ भगवान् पार्श्वनाथ के ढाई सौ वर्ष बाद अर्थात् ईसा से पूर्व छठी शताब्दी में भगवान महावीर हुए। विहार प्रान्त के मुजफ्फरपुर जिले में जहाँ आज कल 'वसाड़' नाम का छोटा सा
SR No.010509
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size15 MB
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