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________________ २७६ ४१२ ४१४ पुरुप वेद [ ४२ ] विपय बोल नम्बर | विषय बोल नम्बर पांच इन्द्रियों का विषय पिण्डस्य धर्म ध्यान २२४ परिमाण ___ ३६४ पिता के तीन अङ्ग १२२ पांच कामगुग्ण ३६५ पीड़ित वायु ४१३ पांच अनुत्तर विमान ३६६ पुद्गल परिणाम चार २६६ पांच संवत्सर ४०० ' पुद्गलास्तिकाय पांच अशुभ भावना ४०१ पद्गलान्तिकाय के पांच भेद २७७ पांच धाय (धात्री) ४०८ पुप्फ चूलिया ३८४ पांच स्थावर काय पुफिया ३८४ पांच प्रकार की अचित्त वायु ४१३ । पुरुष के तीन प्रकार पांच वर्ण पांच रस पुरुषार्थ के चार भेद १६४ पांच प्रतिघात ४१६ । पुलाक ३६६ पांच अनन्तक पुलाक (प्रति सेवा पुलाक) पांच अनन्तक ४१८ के पांच भंद ३६५ पांच निद्रा ४१६ प्रजातिशय (ख) १२६ पांच देव ४२२ । पूर्वानुपूर्वी ११६ पारश्चित प्रायश्चित्त के पांच पूर्वार्धिक बोल पृच्छना ३८१ पारिग्रहिकी पृथकत्व विर्तक शुक्ल ध्यान १२५ पारिणामिक पृथ्वी के देशतः धूजने के पारितापनिकी ११६ पासस्था पास जाकर वन्दना के पांच पृथ्वी तीन वलयों से वलयित असमय ११५ पास जाकर वन्दना योग्य पृष्ट लाभिक समय के पांच बोल ३६४ पृष्टिजा (पुट्रिया) २६४ ४१७ ३५५ ३। तीन बोल ३५४ २६४
SR No.010508
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1940
Total Pages522
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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